16 मार्च, 1907 को पन्ना (म.प्र.) के अजयगढ़ में जन्म। ‘बुंदेलखंड के गौरव’ के नाम से मशहूर श्री अंबिका प्रसाद ‘दिव्य’ की गणना देश के शीर्षस्थ ऐतिहासिक उपन्यासकार, कवि एवं चित्रकार के रूप में की जाती है। साहित्य की समस्त विधाओं में दिव्यजी ने साठ महत्त्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की। प्रतिष्ठित पुरस्कारों, सम्मानों से गौरवान्वित दिव्यजी लोकप्रिय समाजसेवी व क्रांतिदर्शी थे। उनके द्वारा रचित उपन्यास ‘खजुराहो की अतिरूपा’ का अंग्रेजी अनुवाद ‘द पिक्चरस्क खजुराहो’ ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया। दिव्यजी की स्मृति में गत 15 वर्षों से साहित्य सदन, भोपाल द्वारा अनेक साहित्यिक पुरस्कार प्रदान किए जा रहे हैं। उनका अवसान 5 सितंबर,1986 को हुआ।
प्रमुख कृतियाँ : निमियाँ, मनोवेदना, बेलकली, खजुराहो की अतिरूपा, जयदुर्ग का रंगमहल, पीताद्री की राजकुमारी, जोगीराजा, जूठी पातर, काला भौंरा (उपन्यास); गांधी परायण, अंतर्जगत, रामदर्पण, दिव्य दोहावली, पावस, पिपासा, पश्यंती, चेतयंती (काव्य); लंकेश्वर, भोजनंदन कंस, निर्वाण पथ, तीन पग, कामधेनु, सूत्रपात, चरणचिह्न, प्रलय का बीज (नाटक); दीपक सरिता, निबंध विविधा, हमारी चित्रकला, लोकोक्तिसागर (निबंध)।