आनंदीबेन पटेल एक अनुपम व्यक्तित्व की स्वामिनी हैं; जहाँ एक ओर वह एक कठोर प्रशासक हैं, वहीं दूसरी ओर जनता के बीच उनकी उपस्थिति स्नेहिल, ममतामयी, वात्सल्यपूर्ण माँ जैसी है।
किसान की बेटी होने के कारण आनंदीबेन के व्यक्तित्व में धरती की धूल सी विनम्रता और मिट्टी की सोंधी-सोंधी सुगंध है। वे लोगों के बीच एक संवेदनशील शिक्षक के रूप में अपनी पहचान रखती हैं। शिक्षक से लेकर शासक तक की उनकी जीवन-यात्रा पर यदि एक दृष्टि डालें तो समता, ममता और करुणामय के साथ सादा और सहज जीवन व्यतीत करती प्रतीत होती हैं।
आज से 70 वर्ष पूर्व कोई अभिभावक गाँवों में लड़की को पढ़ाने की सोच भी नहीं सकता था। तब उनके पिता ने उनको स्कूल शिक्षा दिलवाने की पहल की। कॉलेज के दिनों में पूरे वर्ग में वह अकेली लड़की थीं। लगन और जाग्रत् इतनी कि जहाँ खेतों में जाकर काम किया तो दूसरी ओर शिक्षक बनकर सैकड़ों छात्राओं का जीवन-निर्माण किया। ऐसे ही अनेकानेक जीवन अनुभवों ने उनके जीवन को आदर्शवाद के उच्च शिखर तक गढ़ा है। संघर्षों ने उन्हें सतत आगे बढ़ने की प्रेरणा दी; ऊर्जावान और प्रज्ञावान बनाया। निरंतर नवीन आयामों की ओर बढ़ती हुई आनंदीबेन उच्च सांस्कृतिक और वैचारिक मूल्यों को आत्मसात् करती हुई महिला शक्ति की सशक्त उदाहरण बनने लगीं।
इस यात्रा में जब भी उनको लगा कि अन्याय हो रहा है, कानून की अवहेलना हो रही है तो उन्होंने अपने-पराए का भेद भूलकर न्याय की स्थापना के लिए पुरजोर कोशिशें कीं। उनके जीवन में समय-समय पर ऐसे अनेक उदाहरण दृष्टिगोचर होते हैं जब वे लीक से हटकर समाज-कल्याण के लिए प्रवृत्त हुईं। राजनीति में महिलाओं को काम करना मुश्किल होता है। राजनीति महिलाओं के लिए कभी भी सहज नहीं रही, मगर आनंदीबेन का व्यक्तित्व तेजोमय होने से वे राजनेता के रूप में शिखर पर पहुँचीं। उन्होंने सदा दृढ़ इच्छाशक्ति, मजबूत मनोबल और जिजीविषा का परिचय देकर संविधान को अपना राजधर्म माना, जो आज के राजनीतिज्ञों के लिए अनुकरणीय है।
संपूर्ण गुजरात तो उनको ‘बहन’ कहकर सम्मान देता है, मगर उनके पूरे व्यक्तित्व में एक माँ का ममतामयी दुलार की अनुभूति होती है। सत्यनिष्ठा और आदर्शों पर चलकर वे मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की राज्यपाल रहीं और वर्तमान में उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश की राज्यपाल हैं।