अरुणा मुकिम ने हिंदी साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है। अभी तक 8 पुस्तकों की रचना की है। ‘महलों में वनवास’ उनका दूसरा उपन्यास है। उनके पहले उपन्यास ‘दक्षाशायनी’ को हिंदी साहित्य में लोकप्रियता मिली।
अरुणा मुकिम बहुआयामी व्यक्तित्व रखती हैं। कई वर्षों से एक लेखिका होने के साथ-साथ वह सामाजिक कार्यकर्ता, कलाकर्मी, रंगकर्मी, प्रखर वक्ता और विचारक भी हैं। उनका एन.जी.ओ. ‘अमन उदय’ महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए कई वर्षों से निरंतर कार्यशील है। वह फिल्म सेंसर बोर्ड की सदस्य रही हैं। आम आदमी के अधिकारों को वह बहुत महत्त्वपूर्ण मानती हैं और उनके लिए सदैव संघर्षरत भी रहती हैं।