1942 में वाराणसी के निकट चकिया में जन्म। माँ कुछ वर्षों तक वर्धा आश्रम में गांधीजी के सान्निध्य में रही थीं और व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेकर जेल भी गई थीं। उनकी हिंदी साहित्य में गहरी अभिरुचि थी। उन्होंने बचपन से ही हिंदी साहित्य के अध्ययन-मनन की ओर प्रेरित किया था।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एम.ए. (अर्थशास्त्र) तथा सागर विश्वविद्यालय से एल-एल.बी. प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। लगभग दस वर्ष तक स्वदेशी सूती मिल, नैनी तथा मऊनाथभंजन में कारखाने के प्रबंधन एवं सह सचिव के पद पर कार्य करता रहा। परंतु बाद में घरेलू परिस्थितियों के कारण घर के व्यवसाय में लगना पड़ा। वर्ष 2003 में पुत्र के पुणे में नौकरी कर लेने पर कार्य-व्यवसाय से अवकाश लेकर उसके साथ रहने चला आया।
बचपन से ही इतिहास, संस्कृति एवं साहित्य की पुस्तकें पढ़ने तथा उनका संग्रह करने की रुचि। समय मिलने पर कुछ लिखता-पढ़ता भी रहा था। यद्यपि उन्हें छपवाने का कभी प्रयास नहीं किया, तथापि अवकाश के क्षणों में उन्हें उलटते-पलटते समय थोड़़ा-बहुत व्यवस्थित ढंग से लिखने की इच्छा जाग्रत् हुई।