चैताली हातीसकर
उन पर जब काल्पनिक किरदारों का भूत सवार नहीं होता, जब उनका मस्तिष्क काल्पनिक हालातों को लेकर दिन में सपने नहीं देख रहा होता, और जब वह कॉफी के कप नहीं गटक रही होतीं, तब चैताली लिखती हैं।
स्कूलों में निबंध लिखने से शुरुआत कीं, तो फिर उसके बाद अपने शब्दों से एक अलग ही दुनिया खड़ी करने में उन्हें खूब आनंद आने लगा। ‘शादी का लड्डू’ पहली पुस्तक है, जिसे प्रकाशित करने का साहस उन्होंने जुटाया है।
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