विभिन्न भाषाओं के साहित्य के अध्येता डॉ. अनिल कुमार पाठक ने मानववाद विषय पर शोध के साथ ही मानववादी विचारधारा को मनसा-वाचा-कर्मणा अपनाया भी है। डॉ. पाठक जहाँ मानवीय संवेदना से स्पंदित हैं, वहीं मानववादी मूल्यों के मर्मज्ञ भी हैं। यद्यपि व्यक्ति के लिए काव्य करने की शक्ति प्राप्त करना नितांत दुर्लभ है, परंतु डॉ. पाठक के संदर्भ में यह शक्ति स्वतःस्फूर्त है। वे सत्कवि के लिए अनिवार्य गुणों— ‘दर्शन’ और ‘प्रतिभा’ से सर्वथा युक्त हैं।
डॉ. पाठक ने गद्य एवं पद्य दोनों विधाओं में सिद्धहस्तता के साथ लेखनी चलाई है। माता-पिता को समर्पित काव्य-संग्रह ‘पारसबेला’ सहित अन्य प्रकाशित/ प्रकाशनाधीन कृतियों की रचना के साथ ही उनकी मर्मस्पर्शी कहानियाँ एवं गीत विभिन्न आकाशवाणी केंद्रों से भी प्रसारित होते रहते हैं। वर्तमान में प्रशासकीय दायित्वों के निर्वहन के साथ ही भारतीय संस्कृति-परंपरा तथा बाल साहित्य पर लेखनरत हैं।