डॉ. धनंजय गिरि
चिंतन और कर्म की त्रिज्या बड़ी कर वृत्त बड़ा करना ही जीवन-ध्येय है। यह जीवन-वृत्त निरपेक्ष नहीं है। जीवन का कोई लक्ष्य नहीं होता। जीवन स्वयं ही एक लक्ष्य है। संज्ञा और सर्वनाम सभी सापेक्ष शब्द हैं। आत्मालाप, आत्मस्तुति, आत्मप्रवंचना से अलिप्त जागतिक अराजकता से दूर, जीव और जगत् के अंतर्संबंध को महसूसते सत्य को अपने पक्ष में करने के बजाय, सत्य के साथ खड़े होने की तैयारी।
जन्मतिथि : 13 मई, 1978
शिक्षा : एम.ए. हिंदी
शोध : इक्कीसवीं सदी की चुनौतियाँ और गुरुजी (माधवराव सदाशिव गोलवलकर) की प्रासंगिकता विषय पर पी-एच.डी.।
संकल्प : स्वच्छ, स्वस्थ, सुंदर, सबल, समर्थ, सुसंस्कृत, समरस और स्वावलंबी समाज का सृजन।
ध्येय : करने लायक कुछ लिखना और लिखने लायक कुछ करना।