डॉ. किरण गुप्ता
जन्म : 26 जुलाई, 1953; मुजफ्फरपुर (बिहार)
शिक्षा : रघुनाथ गर्ल्स कॉलेज, मेरठ (उत्तर प्रदेश)
चित्रकला के प्रति विशेष रुचि रही। चित्रकला विषय के साथ स्नातक, स्नातकोत्तर । 1976 में शुरू हुआ शोधकार्य 'मधुबनी-लोकचित्र : एक विवेचनात्मक अध्ययन' 1982 में संपन्न हुआ। 1984 में पी-एच.डी. उपाधि अर्जित की।
अध्यवसाय : 1975 में बड़ौत के दिगम्बर जैन कॉलेज में चित्रकला की विभागाध्यक्ष के रूप में चयन। 1986 में अध्यापन कार्य से विराम लिया।
कला प्रदर्शनी : 1974 में त्रिवेणी कला संगम, नई दिल्ली में एकल चित्रकला प्रदर्शनी और अगस्त 2003 और जनवरी 2006 में इंडिया हैबिटैट सेंटर, नई दिल्ली में एकल चित्रकला प्रदर्शनी ने पर्याप्त सफलता पाई।
संप्रति : जीवन की आपाधापी के बीच भी चित्रकला जारी रही। मधुबनी चित्रों के लोक रूपों की सहजता एवं विविधता से मेरी कलात्मक शिक्षा प्रभावित हुई। इन लोक रूपों को कला शिक्षा में कैसे गूंथा जाए, इसी में मन रमा रहा। अंततः मधुबनी चित्रों के लोक रूप मछली, कछुवा, मोर, चिड़िया, हाथी, स्वस्तिक आदि मेरे चित्रों के नायक बने।
संपर्क : डी-95, सरिता विहार, नई दिल्ली-110076
डॉ. किरण गुप्ता
जन्म : 26 जुलाई, 1953; मुजफ्फरपुर (बिहार)
शिक्षा : रघुनाथ गर्ल्स कॉलेज, मेरठ (उत्तर प्रदेश)
चित्रकला के प्रति विशेष रुचि रही। चित्रकला विषय के साथ स्नातक, स्नातकोत्तर । 1976 में शुरू हुआ शोधकार्य 'मधुबनी-लोकचित्र : एक विवेचनात्मक अध्ययन' 1982 में संपन्न हुआ। 1984 में पी-एच.डी. उपाधि अर्जित की।
अध्यवसाय : 1975 में बड़ौत के दिगम्बर जैन कॉलेज में चित्रकला की विभागाध्यक्ष के रूप में चयन। 1986 में अध्यापन कार्य से विराम लिया।
कला प्रदर्शनी : 1974 में त्रिवेणी कला संगम, नई दिल्ली में एकल चित्रकला प्रदर्शनी और अगस्त 2003 और जनवरी 2006 में इंडिया हैबिटैट सेंटर, नई दिल्ली में एकल चित्रकला प्रदर्शनी ने पर्याप्त सफलता पाई।
संप्रति : जीवन की आपाधापी के बीच भी चित्रकला जारी रही। मधुबनी चित्रों के लोक रूपों की सहजता एवं विविधता से मेरी कलात्मक शिक्षा प्रभावित हुई। इन लोक रूपों को कला शिक्षा में कैसे गूंथा जाए, इसी में मन रमा रहा। अंततः मधुबनी चित्रों के लोक रूप मछली, कछुवा, मोर, चिड़िया, हाथी, स्वस्तिक आदि मेरे चित्रों के नायक बने।
संपर्क : डी-95, सरिता विहार, नई दिल्ली-110076