8 दिसंबर, 1894 को लाहौर (अब पाकिस्तान) में जनमे गुरुदत्त हिंदी साहित्य के देदीप्यमान नक्षत्र हैं। इन्हें क्रांतिकारियों का गुरु कहा जाता है। जब ये नेशनल कॉलेज, लाहौर में हेडमास्टर थे, तो सरदार भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु इनके सबसे प्रिय शिष्य थे, जो बाद में आजादी की जंग में फाँसी का फंदा चूमकर अमर हो गए। उन्होंने दो सौ से अधिक उपन्यास लिखकर अपार ख्याति अर्जित की। संयुक्त राष्ट्र महासंघ के साहित्यिक संगठन ‘यूनेस्को’ द्वारा सन् 1973 में जारी एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार गुरुदत्त 1960-1970 के दशकों में हिंदी साहित्य में सर्वाधिक पढ़े जानेवाले लेखक रहे हैं। ‘स्वाधीनता के पथ पर’, ‘स्वराज्य दान’, ‘दासता के नए रूप’ (राजनीतिक उपन्यास), ‘कुमारसंभव’, ‘अग्नि-परीक्षा’, ‘परित्राणाय साधूनाम्’ (पौराणिक उपन्यास), ‘पुष्यमित्र’, ‘विक्रमादित्य’, ‘पत्रलता’, ‘गंगा की धारा’ (ऐतिहासिक उपन्यास) के साथ-साथ ‘देश की हत्या’ उनका सर्वाधिक चर्चित उपन्यास है।
स्मृतिशेष : 8 अप्रैल, 1989।