लेखिका को प्रबंध निदेशक, मध्य प्रदेश मत्स्य विकास निगम के पद पर रहते हुए इस पुस्तक को लिखने की प्रेरणा मिली। यह भी पता चला कि मनुष्य अनाज की तरह मछली को उगा सकता है। फिर मछली, मछला क्यों नहीं कहलाती? मछली के प्रति इसके खानेवालों में इतनी आसक्ति क्यों है कि कलकत्ते में मछली का टनों बाजार खत्म होने पर मछली की हड्डी, डैने, चमड़ी, कुछ भी क्यों नहीं बचता? एक सत्यकथा, जिसका विषय हिंदी में सर्वथा नवीन है।
डॉ. इंदिरा मिश्र
जन्म : 7 सितंबर, 1945 को दिल्ली में।
शिक्षा : स्कूली शिक्षा हरिद्वार, श्रीअरविंद आश्रम पांडिचेरी तथा दिल्ली में हुई। दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. तथा वहीं दो वर्ष एक कॉलेज में अध्यापन। एल-एल.बी. परीक्षा उत्तीर्ण। पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त।
सेवाएँ : 1968 में भारतीय आयकर सेवा में नियुक्ति। 1969 में भारतीय प्रशासनिक सेवा (ढ्ढ्नस्) में चयन तथा मध्य प्रदेश में पदस्थापना। 1969 से 2005 मध्य प्रदेश, भारत सरकार तथा छत्तीसगढ़ शासन में विभिन्न पदों पर सेवा। 30 सिंतबर, 2005 को सेवानिवृत्त।
अब तक 15 पुस्तकें लिख चुकी हैं। यात्रा संस्मरण पुरस्कृत।
संपर्क : ‘अमृता’, 37, मौलश्री विहार, पुरैना, रायपुर-492006
दूरभाष : 9826129457