जुगनू शारदेय वरिष्ठ पत्रकार माने जाते हैं, क्योंकि उनका पहला लेख ओम प्रकाश दीपक के संपादन में ‘जन’ में 1968 में छपा था। ‘जन’ के कारण कुछ जान-पहचान बढ़ी और ‘दिनमान’ में 1969 में पहला लेख छपा। 1971 में ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ में भी छपने लगे। ‘धर्मयुग’ में पहला लेख 1972 में छपा। फिर तो दोस्तों ने माना कि जुगनू शारदेय चेक के लिए ही लिखते हैं। इसके अलावा उन्हें कुछ आता भी नहीं। 1978 के आसपास जंगलों का शौक शुरू हुआ। फिल्मकारिता, टेलीविजनकारिता के साथ तरह-तरह के पापड़ बेलते रहे। इन दिनों पटना में रहकर लैपटॉप पर शब्दों का पापड़ बेचते हैं। जंगल के शौक पर किताब ‘मोहन प्यारे का सफेद दस्तावेज’ लिख बैठे, जिसे पर्यावरण और वन मंत्रालय ने हिंदी में मौलिक लेखन के लिए मेदिनी पुरस्कार के योग्य माना। भाषा की जलेबी के अलावा इसमें कुछ भी मौलिक नहीं था। तरह-तरह के अनुवाद किए। नाम बस एक में छपा।
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