मेजर जनरल सूरज भाटिया
सन् 1954 में ज्वॉइंट सर्विसेज विंग, देहरादून में भरती होने के बाद सन् 1957 में कमीशन प्राप्त। देश के विभिन्न भागों में कार्यरत रहे; साथ ही जूनियर तथा सीनियर कमांड कोर्स तथा वेलिंग्टन में स्टाफ कॉलेज कोर्स किया। सन् 1965 के भारत-पाक युद्ध में आर्म्ड डिवीजन के साथ सियालकोट सेक्टर, पाकिस्तान में सेवारत थे। सन् 1971 के भारत-पाक युद्ध में एक अग्रिम ब्रिगेड के स्टाफ में सिंध, पाकिस्तान में युद्ध में भाग लिया। सन् 1978-79 में इनसर्जेंसी के दिनों में मिजोरम में बटालियन कमांड की। स्टेशन कमांडर, जम्मू के रूप में सेनाध्यक्ष से प्रशंसा पाई। नेफा, अरुणाचल में कार्यकाल के दौरान राष्ट्रपति द्वारा विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किए गए। मेजर जनरल का रैंक पाने के पश्चात् सेना मुख्यालय से सेवानिवृत्त हुए।
वे एक वीर सैन्य अधिकारी होने के साथ-साथ सहृदय मानव, संवेदनशील कवि एवं लेखक थे। उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं—शौर्यं तेजो, शूर सूरमा, Conflict & Diplomacy (पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री जसवंत सिंह के साथ), जलियाँवाला कांड का सच, शब्दचित्र। यह उनकी अदम्य इच्छाशक्ति और जिजीविषा ही थी कि उन्होंने रोगग्रस्त व कष्ट में रहते हुए भी वीर बंदा बहादुर के पराक्रम और शौर्य की गौरवगाथा को लिखा।
स्मृतिशेष : 16 सितंबर, 2014