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MAKRAND DAVE

 MAKRAND DAVE

जन्म : 13 नवंबर, 1922 को गोंडल, सौराष्‍ट्र, गुजरात में।
बहुत कम उम्र में ही साहित्य-जगत् का ज्ञान, प्राचीन क्लासिक्स, पुराण, कला, विभिन्न संस्कृतियों और धार्मिक संप्रदायों का ज्ञान प्राप्‍त कर लिया था। 1985 में वलसाड के आदिवासी क्षेत्र में सेवा और साधना के लिए अपनी पत्‍नी ईशा-कुंदनिका के साथ नंदीग्राम नामक कम्यून की स्थापना की। श्री दवे गुजराती के प्रसिद्ध कवि और साहित्यकार होने के साथ-साथ, आध्यात्मिक शिक्षा में भी उतने ही दक्ष थे। अधिकांश कविताएँ तीन खंडों की शृंखला ‘कोई घटमा गहके घेरु’ नाम से प्रकाशित। विभिन्न साधनाओं के सूक्ष्म विवरणों पर कई पुस्तकें; इतना ही नहीं, भारतीय शास्त्रों की नई और अनूठी व्याख्या। उनकी रचित ‘विष्णु सहस्रनाम’ सौंदर्य और आध्यात्मिक महत्ता का मार्गदर्शन करती एक अनूठी रचना है। महात्मा गांधी के परम शिष्य स्वामी आनंद उन्हें ‘साईं’ कहकर बुलाते थे।
सौ. मंजरी सुनील बेलापुरकर
शास्त्रीय संगीत में अनुस्नातक। मराठी, हिंदी और गुजरात के प्रसिद्ध गरबा गायन के अनेक कार्यक्रम दिए। साहित्य में विशेष अभिरुचि, अनुवाद का यह पहला प्रयास। "

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