आम नारी-जीवन की त्रासदियों को सहज ही कहानी का रूप देने में कुशल मेहरुन्निसा परवेज का जन्म मध्य प्रदेश के बालाघाट के बहेला ग्राम में 10 दिसंबर, 1944 को हुआ । इनकी पहली कहानी 1963 में साप्ताहिक ' धर्मयुग ' में प्रकाशित हुई । तब से निरंतर उपन्यास एवं कहानियाँ लिख रही हैं । इनकी रचनाओं में आदिवासी जीवन की समस्याएँ सामान्य जीवन के अभाव और नारी-जीवन की दयनीयता की मुखर उाभिव्यक्ति हुई है । इनको ' साहित्य भूषण सम्मान ' (1995), ' महाराजा वीरसिंह जू देव पुरस्कार ' (1980), ' सुभद्रा कुमारी चौहान पुरस्कार ' (1995) आदि सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है । कई रचनाओं के अन्य भाषाओं में अनुवाद भी हुए हैं । इनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं- आँखों की दहलीज, कोरजा, अकेला पलाश (उपन्यास); आदम और हब्बा, टहनियों पर धूप, गलत पुरुष,फाल्गुनी , अंतिम पढ़ाई, सोने का बेसर, अयोध्या से वापसी, एक और सैलाब, कोई नहीं, कानी बोट, ढहता कुतुबमीनार, रिश्ते, अम्मा, समर (सभी कहानी संग्रह) ।