हिन्दू समाज में जागृति आयी है। छुआछूत की समस्या बहुत हद तक समाप्त हो चुकी है। धर्माचार्यों के प्रयास से राजनीतिज्ञों में खलबली मच गयी। राजनीतिज्ञों ने जातिवादी खायी को प्रयासपूर्वक बढ़ाया है। अब यह समस्या सामाजिक कम राजनीतिक अधिक है। तथापि हिन्दू समाज में लेशमात्र बची इस समस्या के समूल नाश का प्रयास धर्माचार्यों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं को करते रहना चाहिए। संगठित एवं समरस हिन्दू समाज राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता के लिए अपरिहार्य है। हिन्दू समाज की जागृति का परिणाम है कि श्रीराम जन्मभूमि, श्रीरामसेतु जैसे मुद्दों पर सरकारें हिलने लगती हैं। ताल ठोककर धर्मान्तरण करने का साहस अब किसी में नहीं हैं। हिन्दू समाज की आस्था पर चोट करने में राजनीतिज्ञ अब एक बार सोचते अवश्य हैं। जिस दिन हिन्दू समाज संगठित होकर और मुखर हो जाएगा, राष्ट्रीय एकता-अखण्डता, भारतीय संस्कृति के मान बिन्दुओं, हिन्दू समाज की आस्था पर चोट करनेवाली समस्याएँ अधिकतर स्वतः हल हो जाएँगी।
हिन्दुत्व को सही मायने में जब तक सामाजिक व्यवस्था में नहीं उतारा जाएगा, कथनी-करनी में अन्तर समाप्त नहीं किया जाएगा, ऊँच-नीच छुआछूत विहीन समाज की पुनःप्रतिष्ठा नहीं कर ली जाएगी तब तक ऐसे प्रश्न खड़े ही होते रहेंगे। ऐसे प्रश्नों की बिना चिन्ता किये हमें वास्तव में समरस समाज, समतामूलक समाज, सर्वस्पर्शी समाज की पुनर्रचना के भगीरथ प्रयास में लगे रहना होगा। ऐसा हिन्दू समाज जब पुनःप्रतिष्ठित होगा तो प्रश्न उठाने वाले स्वतः चुप हो जाएँगे या उन्हें कोई सुनेगा ही नहीं।