प्रवीण ग़ुगनानी म.प्र. के आमला नामक ग्राम में जनमे, पले- बढ़े । वर्तमान में सतपुड़ा अंचल में बैतूल में निवासरत हैं । विभिन्न संगठनों के कार्य में लगे रहना और चिंतन-विमर्श में संलग्न रहना इनकी सतत प्रवृत्ति है । संप्रति क्षेत्र महामंत्री, अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, मध्यक्षेत्र के साथ अन्य बहुत से सामाजिक संगठनों में दायित्व निर्वहन कर रहे हैं । अपने परिवार, आजीविका और सांगठनिक कार्यों के मध्य कविता और सामयिक घटनाओं पर लेखन इनकी पहचान है । प्रवीणजी की यह लेखकीय पहचान मध्य के लगभग एक दशक तक संगठन के कार्यों और आजीविका के दबाव में रही, किंतु अब विगत ढाई वर्षों से प्रवीण गुगनानी एक कवि, राजनैतिक विश्लेषक, कॉलमनिस्ट, ब्लॉगर के रूप में अति सक्रिय हैं । देश के लगभग बीस राज्यों के हिंदी समाचार-पत्र, पत्रिकाओं में इनके आलेख सतत प्रकाशित होते हैं । प्रवीणजी के आलेख तीक्ष्ण, जागृत, संज्ञा और विज्ञा भाव के साथ राजनीतिज्ञों, प्रशासकों, मीडिया एवं सामान्य जन में जिज्ञासा के भ्रूण को पुष्ट करते हैं तथा उस भ्रूण को मत-निर्माण की दशा में जन्म लेने को बाध्य करते हैं । राष्ट्रवाद, छदम धर्म-निरपेक्षता, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिंदुत्व, प्राचीन भारत का गौरव व जागरण इनके लेखन के मुख्य विषय रहते हैं । |