He has his own place among the narrators of Ramcharitmanas. He is unique in his style, as he engages his audience and readers in a manner that is neither unnecessarily melodramatic nor philosophically dry. He narrates the story of Ramayana in a very articulate and lucid way so that the listeners while enjoying it, are immensely inspired. He has earned the adulation of his readers and recognition of critics and institutions around the world. Rajendra Arun was born on July 29, 1945 in Naravapitambarpur village in Faizabad district, Uttar Pradesh, India. He adopted journalism after acquiring a Masters, in Hindi from Allahabad University. In 1973, he went to Mauritius and became the managing editor of the 'Janata' Hindi weekly owned by the then Prime Minister Sir Seewoosagur Ramgoolam. He had also been appointed the representative of 'Samachar' and United News of India (UNI). Presently he is the foundei Chairman of Ramayana Centre, a first institution of its kind in the World set up by an Act of Parliament. Under his leadership, the Ramayana Centre is actively promoting and propagating the spiritual, social and cultural values flowing therefrom.
मॉरीशस में पं. राजेन्द्र अरुण ‘रामायण गुरु’ के नाम से जाने जाते हैं। उनके अथक प्रयत्न से सन् 2001 में मॉरीशस की संसद् ने सर्वसम्मति से एक अधिनियम (ऐक्ट) पारित करके रामायण सेण्टर की स्थापना की। यह सेण्टर विश्व की प्रथम संस्था है, जिसे रामायण के आदर्शों के प्रचार के लिए किसी देश की संसद् ने स्थापित किया है। पं. राजेन्द्र अरुण इसके अध्यक्ष हैं। 29 जुलाई, 1945 को भारत के फैजाबाद जिले के गाँव नरवापितम्बरपुर में जनमे पं. राजेन्द्र्र अरुण ने प्रयाग विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद पत्रकारिता को व्यवसाय के रूप में चुना। सन् 1973 में वह मॉरीशस गये और मॉरीशस के तत्कालीन प्रधानमन्त्री डॉ. सर शिवसागर रामगुलाम के हिन्दी पत्र ‘जनता’ के सम्पादक बने। उन्होंने वहाँ रहते हुए ‘समाचार’ यू.एन.आई. और ‘हिन्दुस्तान समाचार’ जैसी न्यूज एजेंसियों के संवाददाता के रूप में भी काम किया। सन् 1983 से पं. अरुण रामायण के कार्य में जुट गये। उन्होंने नूतन-ललित शैली में रामायण के व्यावहारिक आदर्शों को जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प लिया है। रेडियो, टेलीविजन, प्रवचन और लेखन से वे अपने शुभ संकल्प को साकार कर रहे हैं।