डॉ. रमन सिंह का जन्म 15 अक्तूबर, 1952 को एक ग्रामीण कृषक परिवार में हुआ। उनकी स्कूली शिक्षा छुईखदान, कवर्धा और राजनांदगाँव में हुई। उन्होंने ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में चिकित्सकों के अभाव को अनुभव किया था। अतः रायपुर के शासकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय में प्रवेश लिया और 1975 में आयुर्वेदिक मेडिसिन में बी.ए.एम.एस. की डिग्री प्राप्त की। उन दिनों शहरों में भी चिकित्सकों की खूब माँग थी और ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले युवा चिकित्सक भी नगरों में ही रहना पसंद करते थे। परंतु 23 वर्ष के युवा डॉ. रमन ने कस्बे में ही प्रैक्टिस शुरू की। चूँकि वे नाममात्र की फीस लेते थे और गरीबों का उपचार निःशुल्क करते थे, इसलिए वे गरीबों के डॉक्टर के रूप में लोकप्रिय रहे।
डॉ. रमन सिंह के व्यक्तित्व को तराशने में उनके पारिवारिक संस्कारों की बड़ी भूमिका रही। उनके पिता स्व. श्री विघ्नहरण सिंह ठाकुर की ख्याति कवर्धा के एक सफल और सदाशयी वकील के रूप में थी। मातुश्री स्व. श्रीमती सुधा सिंह को दयालुता की प्रतिमूर्ति माना जाता था। धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन में उनकी गहन रुचि थी। भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों में उनकी अटूट आस्था थी। माता और पिता दोनों से शैशवकाल में प्राप्त संस्कारों ने डॉ. रमन सिंह के व्यक्तित्व का विकास किया। सुखद संयोग यह रहा कि उनकी सहधर्मिणी श्रीमती वीणा सिंह भी स्वभाव से सहज, सरल और विनम्र है। डॉ. रमन सिंह ने एक दशक के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ ने विकास के नए कीर्तिमान रचे हैं। अभी उनके सामने संभावनाओं का असीम आकाश है।