जन्म : 07 सितंबर, 1910, पाली (ललितपुर), उ.प्र.।
शिक्षा : स्नातक होने के पश्चात् कानपुर एस.डी. कॉलेज से वकालत की उपाधि 1938 में प्राप्त की।
कृतित्व : कुशाग्र बुद्धि, बहस की धाराप्रवाह ओजस्वी शैली एवं विधि-विधान का ज्ञान तथा अद्भुत सूझ-बूझ के कारण फौजदारी वकील के रूप में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में अपार प्रसिद्धि अर्जित की। सन् 1940 में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आवाज बुलंद की। फलस्वरूप अनेक बार झाँसी और फतेहगढ़ जेलों में सजा भोगी। सन् 1952 से 1962 तक उ.प्र. विधान सभा के सदस्य रहे।
लेखन : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं
में लेख और कविताएँ प्रकाशित। ‘रामचरितामृत’, ‘जीवन रहस्य’, ‘साधनों की विवेचना’ (गद्य में) तथा ‘प्रवासिता प्रिया’ (सीता बनवास) (पद्य में) प्रकाशित।
स्मृतिशेष : 17 दिसंबर, 1998।