जन्म : 8 अक्तूबर, 1926 को क्योंटरा, औरैया-इटावा (उ.प्र.) में।
डॉ. रमानाथ त्रिपाठी बहुआयामी प्रतिभा के धनी हैं। वे अनुसंधाता, कथाकार, निबंधकार, कवि और बहुभाषी अनुवादक हैं। उन्होंने बंगाल, असम और ओडि़शा के विराट् साहित्यिक समारोहों में वहीं की भाषाओं में धारा-प्रवाह भाषण दिए हैं। एक ओर उन्होंने राम-साहित्य पर गंभीर शोधकार्य किया है, तो दूसरी ओर ऐसा रामकथात्मक उपन्यास लिखा है जो पाठक को त्रेतायुग में पहुँचा देता है। शोध-प्रबंध, निबंध-संग्रह, यात्रा-वृत्तांत, कहानी-संग्रह, उपन्यास आदि को मिलाकर उनके मौलिक, अनूदित और संपादित ग्रंथों की संख्या लगभग 40 है। भारत, मॉरीशस, अमेरिका और इंग्लैंड की अनेक पत्रिकाओं में उनकी 300 रचनाएँ प्रकाशित। विविध क्षेत्रों के लगभग 30 पुरस्कार-सम्मान प्राप्त। उग्र-देशभक्ति के कारण उन्हें दो-तीन बार जेल-यात्रा भी करनी पड़ी। ‘रामगाथा’ उपन्यास के पश्चात् उनकी चर्चित कृतियाँ हैं—‘वनफूल’ और ‘महानागर’ (आत्मकथा)।
त्रिपाठीजी दिल्ली विश्वविद्यालय से सेवामुक्त होकर दो वर्ष तक निराला सृजन पीठ के निदेशक रहे।