क्रांतिकारियों के शिरमौर पं. रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ का जन्म 1897 में शाहजहाँपुर (उ.प्र.) में हुआ। तेरह-चौदह वर्ष की अवस्था में उन्होंने प्राथमिक शिक्षा पूरी की। ‘सत्यार्थ प्रकाश’ पढ़ने के बाद वे पक्के आर्यसमाजी बन गए। भाई परमानंद की पुस्तक ‘तवारीख-ए-हिंद’ पढ़कर वे बहुत प्रभावित हुए और क्रांतिकारी कार्यों में संलग्न हो गए। उन्होंने पैसों के लिए ‘अमेरिका ने स्वतंत्रता कैसे प्राप्त की’ पुस्तक प्रकाशित कराई। ‘बिस्मिल’ को क्रांतिकारी दल के संचालन का कार्यभार सौंपा गया। उन्होंने अनेक पुस्तकें तथा जीवनियाँ लिखीं। धन के अभाव की पूर्ति के लिए उनके दल ने काकोरी में रेल से सरकारी खजाना लूटा। बाद में इस केस के सभी क्रांतिकारी पकड़े गए। 19 दिसंबर, 1927 को उन्हें फाँसी दे दी गई। फाँसी से पूर्व जेल में ही उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी। आजादी के शहीदों में उनका नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है।