संजय राय ‘शेरपुरिया’ ने अपने जीवन के 30 महत्त्वपूर्ण साल एक बड़े उद्यमी बनने के अपने सपने को साकार करने में बिताए, आज वह एक सामाजिक उद्यमी बनकर समाज के सामने खड़े है। वैसे तो उनका सामाजिक कार्यों को करने का इतिहास 2001 के गुजरात में आए भयावह भूकंप से ही शुरू हो गया था और धीरे-धीरे ‘जीवन-प्रभात’ से लेकर अनगिनत मानवीय कार्यों में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। अपने जन्मस्थान गाजीपुर जिले में पिछले साल से उनकी ‘मेरा रोजगार’ एवं ‘आत्मनिर्भर भारतीय’ की यात्रा शुरू हुई, जहाँ पर किसानों को अद्यतन तकनीक के माध्यम से उनकी आय को दुगुना करने का कार्य संपन्न हो रहा है। कोरोना की दूसरी लहर में सरकारी अस्पतालों में हो रही ऑक्सीजन की कमी को दूर कर ‘ऑक्सीजन मैन’ और श्मशान में हो रही लकडि़यों की कमी को ‘लकड़ी बैंक’ बनाकर पूरा किया तथा ‘लकड़ी मैन’ का सम्मान पाया। ‘हर साँस की आस’ बनकर गाजीपुर जिले में सेवा के कार्य किए। वह संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (एस.डी.जी. चौपाल) के ‘नेशनल ब्रांड एंबेसेडर’ हैं।
सिर्फ कार्यों से या समृद्धता के धनी न बनकर, संजय राय ‘शेरपुरिया’ विचारों से भी समृद्ध बने। निरंतर अभ्यास और जिज्ञासा के साथ उनको पुस्तक-लेखन की भी रुचि रही है। उन्होंने अब तक ‘कराहता बंगाल’, ‘जल प्रबंधन’, ‘टीचर्स’, ‘मैं माधो भाई ः एक पाकिस्तानी हिंदू’ जैसी कई पुस्तकों का लेखन किया और हर रविवार को ‘दैनिक भास्कर’ में मानवीय गुणों पर निरंतर लेख लिखकर एक अच्छे लेखक का भी सम्मान पाया।