सारदेंदु बंद्योपाध्याय का जन्म 30 मार्च, 1899 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में हुआ था। उनके साहित्यिक जीवन की शुरुआत कविता-संग्रह से हुई, जो 1919 में प्रकाशित हुआ।
सन् 1938 में सारदेंदु ‘बॉम्बे टाकीज’ तथा अन्य फिल्म प्रतिष्ठानों में पटकथा लेखक के रूप में कार्य हेतु बंबई चले गए, जहाँ उन्होंने 1952 तक काम किया। इसके बाद उन्होंने फिल्मों में लिखना छोड़ दिया और पुणे आ गए तथा अपना ध्यान पुनः साहित्य-लेखन में लगाया। बाद में चलकर वे बँगला साहित्य में भूत-प्रेतों की कहानियों, ऐतिहासिक पे्रम-प्रसंगों और बाल-साहित्य के लोकप्रिय और प्रख्यात लेखक के रूप में उभरकर आए। किंतु ब्योमकेश की कहानियों का समकालीन बँगला साहित्य में आज भी योगदान माना जाता है।
सारदेंदु बंद्योपाध्याय को उनके उपन्यास ‘तुंगभद्रा तीरे’ के लिए 1967 में ‘रवींद्र पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। उसी वर्ष उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय की ओर से ‘शरत स्मृति पुरस्कार’ दिया गया। उनका बाद का जीवन पुणे में बीता, जहाँ 22 सितंबर, 1970 को उनका स्वर्गवास हो गया।