स.ही. वात्स्यायन ‘अज्ञेय’(1911-1987)कुशीनगर (देवरिया) में सन् 1911 में जन्म। पहले बारह वर्ष की शिक्षा पिता (डॉ. हीरानन्द शास्त्री) की देख-रेख में घर ही पर। आगे की पढ़ाई मद्रास और लाहौर में। एम.ए. अंग्रेज़ी में प्रवेश किन्तु तभी देश की आज़ादी के लिए एक गुप्त क्रान्तिकारी संगठन में शामिल होना। शिक्षा में बाधा तथा सन् ’30 में बम बनाने के आरोप में गिरफ्तारी। जेल में रह कर ‘चिन्ता’ और ‘शेखरः एक जीवनी’ की रचना। क्रमशः सन् ’36-37 में ‘सैनिक’, ‘विशाल भारत’ का संपादन। सन् ’43 से 46 तक ब्रिटिश सेना में भर्ती। सन् ’47-50 तक ऑल इण्डिया रेडियो में काम। सन् ’43 में ‘तार सप्तक’ का प्रवर्तन और संपादन। क्रमशः दूसरे, तीसरे, चौथे सप्तक का संपादन। ‘प्रतीक’, ‘दिनमान’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘वाक्’, ‘एवरीमैन’ पत्र-पत्रिकाओं के संपादन से पत्रकारिता में नये प्रतिमानों की सृष्टि।
देश-विदेश की अनेक यात्राएँ, जिन से भारतीय सभ्यता की सूक्ष्म पहचान और पकड़, विदेश में भारतीय साहित्य और संस्कृति का अध्यापन। कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित, जिन में ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ सन् ’79, यूगोस्लाविया का अंतरराष्ट्रीय कविता सम्मान ‘गोल्डन रीथ’ सन् ’83 भी शामिल। सन् ’80 से वत्सल निधि के संस्थापन और संचालन के माध्यम से साहित्य और संस्कृति के बोध निर्माण में कई नये प्रयोग।
अब तक उन्नीस काव्य-संग्रह, एक गीति-नाटक, चार उपन्यास, छः कहानी संग्रह, दो यात्रा संस्मरण, सात निबन्ध संग्रह आदि अनेक कृतियाँ प्रकाशित।