‘महात्मा गांधी-प्रथम दर्शन : प्रथम अनुभति’ के संपादक श्री शंकरदयाल सिंह का नाम साहित्य और राजनीति के लिए अपरिचित नहीं है। गांधीवादी चिंतक, बहुचर्चित साहित्यकार और प्रतिष्ठित राजनेता के रूप में उन्हें देश में जो आदर प्राप्त है उसे वे अपने जीवन की सबसे बड़ी पूँजी मानते हैं।
श्री शंकरदयाल सिंह जहाँ एक सक्रिय सांसद के रूप में जाने-पहचाने जाते हैं, वहीं लेखन की निरंतरता के प्रतीक भी मानते जाते हैं। उनके जीवन की मुख्य रूप से दो ही प्रतिबद्धताएँ हैं—राष्ट्रपिता और राष्ट्रभाषा।
इस संग्रह के द्वासरा आनेवाली पीढ़ियों के लिए जो जाग्रत संदेश है उसका सही मूल्यांकन आज से बीस-पचीस वर्षों बाद होगा जब गांधीजी को अपनी आँखोंदेखे, शायद ही कोई व्यक्ति इस दुनिया में मौजूद हों।