शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 15 सितंबर 1876 को देवानंदपुर (प. बंगाल) में हुआ। बँगला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार एवं कहानीकार के रूप में ख्याति। वे अपने माता-पिता की नौ संतानों में से एक थे। अठारह साल की अवस्था में उन्होंने इंटर पास किया। इन्हीं दिनों उन्होंने ‘बासा’ (घर) नाम से एक उपन्यास लिख डाला। रोजगार की तलाश में शरतचंद्र बर्मा गए और लोक निर्माण विभाग में क्लर्क बने। बर्मा में उनका संपर्क बंगचंद्र नामक एक व्यक्ति से हुआ, जो था तो बड़ा विद्वान्, पर शराबी और उच्छृंखल था। यहीं से ‘चरित्रहीन’ का बीज पड़ा, जिसमें मेस जीवन के वर्णन के साथ मेस की नौकरानी से प्रेम की कहानी है।
प्रमुख कृतियाँ : शरतचंद्र ने अनेक उपन्यास लिखे, जिनमें ‘पंडित मोशाय’, ‘बैवुंक्तठेर बिल’, ‘मेज दीदी’, ‘दर्पचूर्ण’, ‘श्रीकांत’, ‘अरक्षणीया’, ‘निष्कृति’, ‘मामलार फल’, ‘गृहदाह’, ‘शेष प्रश्न’, ‘दत्ता’, ‘देवदास’, ‘बाम्हन की लड़की’, ‘विप्रदास’, ‘देना पावना’ आदि । बंगाल के क्रांतिकारी आंदोलन को लेकर ‘पथेर दावी’ उपन्यास लिखा। इनके उपन्यासों पर धारावाहिक तथा फिल्में बनी हैं।
स्मृतिशेष : 16 जनवरी, 1938