Sister Nivedita, born Margaret Elizabeth Noble, was a Scots-Irish social worker, author, teacher and disciple of Swami Vivekananda. She met Vivekananda in 1895 in London when she was thirty years old, and this courageous daughter of the West, sailed thousands of miles across to Calcutta, India, (present-day Kolkata) in 1898. She took to monasticism. Swami Vivekananda gave her the name Nivedita (meaning “Dedicated to God”) when he initiated her into the vow of Brahmacharya on March 25, 1898. She was closelyassociated with the newly established Ramakrishna Mission. However because of her active contribution in the field of Indian Nationalism, she had to publicly dissociate herself from the activities of the Mission on the insistence of the then president Swami Brahmananda. She was very close toSarada Devi, the spiritual consort of Sri Ramakrishna and one of the major influences behind Ramakrishna Mission; and also with all brother disciples of Swami Vivekananda. She came to assist Swami Vivekananda in his work of setting up an educational institution for women in India.Nivedita died at dawn on October 13, 1911, when she was just forty-three, in Roy Villa Darjeeling. Her epitaph aptly reads: ‘Here reposes Sister Nivedita who gave her all to India’.
भगिनी निवेदिता का मूल नाम ‘मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल’ था। उनका जन्म 28 अक्तूबर, 1867 को आयरलैंड में हुआ। वे स्वामी विवेकानंद की शिष्या बनी।
भारत में आज भी जिन विदेशियों पर गर्व किया जाता है, उनमें भगिनी निवेदिता का नाम पहली पंक्ति में आता है, जिन्होंने न केवल भारत की आजादी की लड़ाई लड़नेवाले देशभक्तों की खुलेआम मदद की, बल्कि महिला शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। भगिनी निवेदिता का भारत से परिचय स्वामी विवेकानंद के जरिए हुआ। स्वामी विवेकानंद के आकर्षण व्यक्तित्व, निरहंकारी स्वभाव और भाषण-शैली से वे इतना प्रभावित हुईं कि उन्होंने ने केवल रामकृष्ण परमहंस के इस महान् शिष्य को अपना आध्यात्मिक गुरु बना लिया, बल्कि भारत को अपनी कर्मभूमि भी बनाया। अपने गुरु की प्रेरणा से कलकत्ता में लड़कियों के लिए स्कूल खोला, जिसका उद्घाटन शारदा माँ ने किया। माँ शारदा उन्हें अपनी बेटी की तरह स्नेह दिया करती थीं।
भारत प्रेमी भगिनी निवेदिता दुर्गापूजा की छुट्टियों में भ्रमण के लिए दार्जिलिंग गई थीं, लेकिन वहाँ उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया और अंत में 13 अक्तूबर, 1911 को 44 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।