वसंत निरगुणे जनजातीय और लोक-संस्कृति, साहित्य और कला के अध्येता हैं। उन्होंने मध्य प्रदेश के निमाड़, मालवा, बुंदेलखंड तथा बघेलखंड के अलावा छत्तीसगढ़ की कला-परंपरा, कलारूपों और वाचिक-परंपरा के अनेक रूपाकारों तथा गोंड, बैगा, कोरकू, भील, सहरिया, भारिया एवं कोल जनजातियों पर, विशेष रूप से समग्र जनजातीय सांस्कृतिक परंपरा का अध्ययन किया है। वे स्वयं एक लोक-परंपरा से जुड़े हैं।
श्री निरगुणे का जन्म पुराण प्रसिद्ध नगरी माहिष्मती, वर्तमान महेश्वर (पश्चिम निमाड़) मध्य प्रदेश में हुआ। उन्हें साहित्य अकादेमी, दिल्ली का भाषा सम्मान, टैगोर रिसर्च स्कॉलर फैलोशिप तथा प्रदेश के अनेक सम्मान प्राप्त हुए हैं, जिनमें श्रीनरेश मेहता वाङ्मय सम्मान और मंडन मिश्र सम्मान प्रमुख हैं। वे तीस से अधिक पुस्तकों के रचयिता हैं। उन्होंने सोवियत संघ रूस में आयोजित ‘भारत महोत्सव’ में भाग लिया। उन्होंने पाँच लघुकला फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया तथा भोपाल के जनजातीय संग्रहालय की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
वे पूर्व सर्वेक्षण अधिकारी, आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी, भोपाल में रहे हैं।