1955 में जनमी विनीता वर्मा ने स्कूल के बाद वास्तुकला की शिक्षा पूरी की, फिर पढ़ाया भी और प्रैक्टिस भी की। 1977 में उनका विवाह वास्तु विशेषज्ञ बलवीर वर्मा से हुआ। एक पुत्र और एक पुत्री को शिक्षित कर विनीता ने अपना सांसारिक दायित्व पूरा किया और फिर अपना ध्यान जीवन के उच्च लक्ष्यों की ओर मोड़ा। इस मार्ग पर चलते हुए उन्होंने कई आध्यात्मिक विचारधाराओं का अध्ययन किया। अंततः ध्यान व चिंतन-मनन के प्रति समर्पित हुईं। उन्हें यह अहसास भी हुआ कि यदि आज की युवा पीढ़ी में सजगता आए, तो बहुत कुछ जो अनैतिक हो रहा है, उसमें कमी आएगी। इस उद्देश्य से अधिकतम जनसंपर्क के लिए विनीता ने हिंदी भाषा को चुना और अपने विचार लिखने शुरू किए। यह पुस्तक उसी विचार-मंथन का नवनीत है।