हिंदी विभाग, काशी विद्यापीठ, वाराणसी के पूर्व आचार्य, लब्धप्रतिष्ठ विचारक, भाषाशास्त्री, आलोचक एवं उपन्यासकार प्रो. युगेश्वर का जन्म 10 जनवरी, 1934 को बिहार के एक गाँव में हुआ था । साहित्यालंकार तक की शिक्षा बिहार में प्राप्त कर आपने हाई स्कूल से पी-एच.डी. तक की शिक्षा वाराणसी में पूर्ण की । पिछले पचास वर्षो से लेखन, अध्यापन तथा सार्वजनिक कार्यों में सक्रिय हैं । समाजवादी राजनीति, साहित्य एवं अध्यात्म के विभिन्न क्षेत्रों में शोधपूर्ण तथा विचारोत्तेजक लेखन के कारण आपकी विशिष्ट पहचान है । हिंदी की अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में आपके निबंध प्रकाशित होते रहते हैं । आपकी शोधवृत्ति और ज्ञान के सम्मानार्थ उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ ने आपको ' मधु लिमये फेलोशिप ' प्रदान की है ।
आपने दो दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना की है; जिनमें से प्रमुख हैं- भाषा शास्त्र : ' मगही भाषा ', ' हिंदी कोश-विज्ञान का उद्भव और विकास '; आलोचना : ' तुलसीदास : आज के संदर्भ में ', ' तुलसी का प्रतिपक्ष ', ' भक्ति : आज के संदर्भ में ', ' सबके प्रेमचंद ', ' प्रसाद काव्य का नया मूल्यांकन ', ' कबीर समग्र ' (दो खंडों में); विचार प्रधान : ' आपातकाल का धूमकेतु राजनारायण ', ' समाजवाद : आचार्य नरेंद्रदेव, डॉ. लोहिया और जयप्रकाशजी की दृष्टि में ', ' मानस निबंध '; उपन्यास : ' सीता : एक जीवन ', ' राम : एक जीवन ', ' रावण : एक जीवन ', ' हनुमान : एक जीवन ', ' भरत : एक जीवन ', ' संत साहेब ' (संत कबीर के जीवन पर आधारित), ' पर्वत पुत्री ', ' पंचानन ', ' दूसरा इंद्र ', ' देवव्रत ', ' पार्थ ' एवं ' कृष्णा ' ।