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प्रस्तुत पुस्तक अवधी भाषा के प्रचलित मुहावरे और लोकोक्तियों का संग्रह है। यह पुस्तक न तो सऌपूर्ण मुहावरों का वृहद्कोश है और न हम ऐसा दावा करते हैं। मुहावरे भाषा की जीवंतता को दरशाते हैं। किसी बात को सही तरीके से बताने के लिए मुहावरे और लोकोक्तियों का सहारा लिया जाता है। प्रायः किसी बात के मर्म को बताने के लिए लऌंबे विवरण के बजाय मुहावरे या लोकोक्तियों के द्वारा सुगमता से और शुद्ध रूप में बताया जा सकता है। मुहावरे समाज की स्थितियाँ भी बताते हैं। मुहावरे और लोकोक्तियों में भेद किया जा सकता है। मुहावरे छोटे और किसी विशेष बात के संदर्भ, दृष्टांत या निष्कर्ष से बने होते है और धीरे-धीरे प्रचलित हो जाते हैं, जिनका उपयोग भाषा में सऌंप्रेषण के साथ-साथ चुटीलापन भी प्रदान करता है। लोकोक्ति किसी पूर्व घटना की उपमा या दृष्टांत होने के साथ-साथ कुछ उपदेश या ज्ञान की बात भी बताती है। मुहावरे आज भी गढे़ जा रहे हैं, जो प्रायः मीडिया व फिल्म के माध्यम से लोगों तक पहुँचते हैं, पर वही मुहावरे जीवित रह पाते हैं, जो लोगों की जबान पर चढ़ जाते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में ठेठ अवधी मुहावरों के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में प्रचलित मुहावरों का भी समावेश किया गया है। पुस्तक के अंतिम अध्याय में इन सभी मुहावरों और लोकोक्तियों को अक्षरानुसार सूचीबद्ध किया गया है, जिससे किसी भी मुहावरे को ढूँढ़ने में आसानी रहे। यह पुस्तक सामान्य पाठकगण, भाषाविद् तथा भाषा के शोध छात्रों में समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगी।
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अनुक्रम
संदेश — 5
प्राक्कथन — 7
प्रस्तावना — 9
आभार — 11
1. अनाज एवं कृषि परिवेश संबंधी मुहावरे — 15
2. जानवरों के नाम पर मुहावरे — 46
3. जातियों से संबंधित मुहावरे — 69
4. रिश्तों से संबंधित मुहावरे — 76
5. शरीर के अंगों से संबंधित मुहावरे — 88
6. विविध मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ — 110
7. मुहावरे एवं लोकोक्तियों की सारणी — 166
डॉ. जी. एस. श्रीवास्तव का जन्म 3 दिसंबर, 1942 को अवध क्षेत्र के राय बरेली जनपद में हुआ।
बारहवीं की बोर्ड परीक्षा में पूरे जनपद में प्रथम स्थान प्राप्त किया। लखनऊ विश्वविद्यालय से 1963 में भूविज्ञान विषय में एम.एस-सी.। कालांतर में भूवैज्ञानिक परीक्षा पास करने पर जून 1966 में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण में आ गए जहाँ 2003 तक सेवारात रहे और सर्वेक्षण के उप महानिदेशक के पद को गौरवान्वित किया। इस दौरान नीदरलैंड्स के प्रख्ऌयात आई.टी.सी. संस्थान की छात्रवृत्ति अर्जित कर पुनः एम.एस-सी. की डिग्री सुदूर संवेदन विधा में हासिल की और सर्वेक्षण की ओर से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में समुचित योगदान देते रहे।
सेवा-निवृत्ति के बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से शोध छात्र के रूप में पुनः संऌबद्ध हो गए और अंततः उन्हें वर्ष 2009 में वैदिक सरस्वती नदी पर भूवैज्ञानिक अनुसंधान पर पी-एच.डी. डिग्री प्रदान की गई। वह स्नातकोत्तर स्तर की भूसूचनिकी विषय की एक सुग्राह्य पाठ्यपुस्तक के लेखक भी हैं, संप्रति कई विश्वविद्यालयों में भूसूचनिकी विषय के पठन-पाठन पर अतिथि व्याऌख्याता के रूप में व्यस्त रहते हैं।