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अस्सी के दशक के बाद से विगत कुछ वर्षों तक लिखे गए मेरे लेखों ने बाल मजदूरी, बाल दुर्व्यापार, बाल दासता, यौन उत्पीड़न, अशिक्षा आदि विषयों को सैद्धांतिक और व्यावहारिक आधार दिया। जहाँ तक मेरी जानकारी है, ये बच्चों के अधिकारों से संबंधित विषयों पर लिखे गए सबसे शुरुआती लेख हैं।
मैं आपको विनम्रतापूर्वक बताना चाहूँगा कि ये लेख ऐसे ऐतिहासिक दस्तावेज हैं, जिन्होंने भारत में ही नहीं, दुनिया भर में बाल अधिकारों के आंदोलन को जन्म दिया। साधारण लोगों से लेकर बुद्धिजीवियों, कानून निर्माताओं तथा संयुक्त राष्ट्र संघ तक में हलचल पैदा की।
मैंने पैंतीस सालों में इन्हीं विचारों की ताकत को संगठनों व संस्थाओं के निर्माणों, सरकारी महकमों के गहन शोध प्रबंधों, कॉरपोरेट जगत् की नीतियों, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कानूनों और सरकारी बजटों में परिवर्तित होते देखा है।
—कैलाश सत्यार्थी
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अनुक्रम
लेखकीय — 5
मुति का सपना
1. कैसे बचे बचपन — 15
2. बाल-मित्र समाज के निर्माण की ओर — 36
3. बच्चों से जुड़े बड़ों के सवाल — 79
बचपन की आजादी
1. अदृश्य गुलामी है घरेलू बाल मजदूरी — 91
2. मानव अधिकार और बाल-श्रम — 95
3. बाल-श्रम उन्मूलन से गुजरता है विकास का रास्ता — 103
4. जरूरत बाल-मित्र मानसिकता की — 107
5. कब मिलेगा घरेलू कामगारों को न्याय? — 111
6. बच्चे नहीं है राजनीतिक दलों की प्राथमिकता — 114
7. कैसे बने बाल-मित्र बिहार — 117
8. घरेलू बाल मजदूरी पर प्रतिबंध से उपजे सवाल — 120
9. इतनी विसंगतियों के चलते कैसे मिटे बाल मजदूरी — 125
10. जवाबदेही के नए सत्याग्रह की जरूरत — 129
बिकता बचपन
1. बाल व्यापार का समाजशास्त्र — 137
2. जानवरों से भी सस्ते बिकते बच्चे — 142
3. न्यायिक सक्रियता से टूटेगा गुमशुदगी और बाल यौन शोषण का दुष्चक्र — 145
4. बाल तस्करी का नया केंद्र बन रहा है असम — 150
5. त्रासदी, बच्चे और दुर्व्यापार — 155
बचपन की सुरक्षा
1. सामाजिक सुरक्षा और कानून के कवच से बचेगा बचपन — 161
2. किताबों तक सीमित हैं बच्चों के हक के कानून — 165
टूटेंगी दासता की बेड़ियाँ
1. बाल-श्रम उन्मूलन के लिए सत कानून की दरकार — 173
2. सरकारी तंत्र को जवाबदेह और संवेदनशील बनाने की जरूरत — 177
3. किशोर न्याय अधिनियम कैसे प्रभावकारी हो? — 182
4. बाल-श्रम प्रतिबंध के नाम पर हो रहा है भद्दा मजाक — 186
5. बच्चों के प्रति दोस्ताना व्यवहार की जरूरत — 191
6. बाल अधिकारों की रक्षा के लिए आंदोलनों के महान् प्रेरणास्रोत बने रहेंगे मदीबा — 196
शिक्षा-मुति का औजार
1. शिक्षा से खुलता है तरकी का दरवाजा — 201
2. एक सपना जो सच हुआ — 206
3. सबके लिए शिक्षा के बगैर संभव नहीं है विकास — 212
4. हाशिए पर तिबती बच्चे — 216
बच्चे और धर्म
1. बच्चों को मत दो सांप्रदायिक पहचान — 223
2. अयोध्या की गलियों में भीख माँगते रामलला — 227
3. पहचान के संकट से जूझते रामलला — 230
4. ईश्वर-धर्म की हकीकत और समाज-परिवर्तन — 235
मध्य प्रदेश के विदिशा में 11 जनवरी, 1954 को जनमे कैलाश सत्यार्थी भारत में पैदा होनेवाले पहले नोबेल शांति पुरस्कार विजेता हैं। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य भी किया। लेकिन बचपन के प्रति गहरी करुणा के कारण उन्होंने इंजीनियरिंग की सुविधाजनक नौकरी छोड़कर सन् 1981 से बचपन बचाने की मुहिम शुरू कर दी। देश और दुनिया में बाल दासता जब कोई मुद्दा नहीं था, तब श्री सत्यार्थी ने ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ सहित विश्व के लगभग 150 देशों में सक्रिय ‘ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर’ और ‘ग्लोबल कैंपेन फॉर एजुकेशन’ जैसे संगठनों की स्थापना की। वे विश्व में उत्पादों के बालश्रम रहित होने के प्रमाणीकरण व लेबल लगाने की विधि ‘गुडवीव’ के जनक हैं। उन्हें देश के लगभग 85 हजार बच्चों को आधुनिक दासता से मुक्त कराने का ही नहीं, बल्कि बाल दासता तथा शिक्षा को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने का भी श्रेय जाता है। इसके लिए उन पर और उनके परिवार पर अनेक बार प्राणघातक हमले भी हुए हैं।
श्री सत्यार्थी पहले ऐसे भारतीय हैं, जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के अलावा डिफेंडर फॉर डेमोक्रेसी, इटैलियन सीनेट मेडल, रॉबर्ट एफ. कैनेडी अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार सम्मान, फेड्रिक एबर्ट मानव अधिकार पुरस्कार और हार्वर्ड ह्यूमेनेटेरियन सम्मान जैसे कई विश्व प्रसिद्ध पुरस्कार मिल चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करने वाले श्री सत्यार्थी को आधुनिक समय में मानव दासता के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले दुनिया के सबसे बड़े योद्धाओं में गिना जाता है।