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बाँस के कई रूप होते हैं, जब एक बच्चा पैदा होता है तो बाँस से उसका पालना बनाया जाता है; फसल काटने के बाद झाड़ने के लिए उससे एक सूप बन जाता है; फलों के लिए एक टोकरी । श्रमिकों के लिए यह सीढ़ी का काम करता है। यह रोजमर्रा के उपयोग केलिए फर्नीचर भी है, जैसे सोने के लिए खाट। इसकी कोमल टहनियाँ सब्जी के काम आती हैं और लोग इससे घर भी बना सकते हैं। इनसान के जन्म से लेकर मृत्यु तक बाँस एक आम आदमी के लिए उपयोगी होने के तरीके ढूँढ़ ही लेता है। यह वाकई गुमनाम और बिसराया हुआ पेड़ है।
सुधा मूर्ति का जन्म सन् 1950 में उत्तरी कर्नाटक के शिग्गाँव में हुआ। उन्होंने कंप्यूटर साइंस में एम.टेक. किया और वर्तमान में इन्फोसिस फाउंडेशन की अध्यक्षा हैं। बहुमुखी प्रतिभा की धनी सुधा मूर्ति ने अंग्रेजी एवं कन्नड़ भाषा में उपन्यास, तकनीकी पुस्तकें, यात्रा-वृत्तांत, लघुकथाओं के अनेक संग्रह, अकाल्पनिक लेख एवं बच्चों हेतु चार पुस्तकें लिखीं। सुधा मूर्ति को साहित्य का ‘आर.के. नारायणन पुरस्कार’ और वर्ष 2006 में ‘पद्मश्री’ तथा कन्नड़ साहित्य में उत्कृष्ट योगदान हेतु वर्ष 2011 में कर्नाटक सरकार द्वारा ‘अट्टीमाबे पुरस्कार’ प्राप्त हुआ। अब तक भारतीय व विश्व की अनेक भाषाओं में लगभग दो सौ पुस्तकें प्रकाशित होकर बहुचर्चित-बहुप्रशंसित।