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प्रस्तुत पुस्तक में यही बताया गया है कि सीखनवाले बालकों एवं बालिकाओं से हम क्या अपेक्षा करते हैं? सीखनेवाले से हम क्या अपेक्षा करते हैं? उन्हें कैसा व्यवहार सीखना और करना चाहिए? अपेक्षित संस्कार कैसे डाले जा सकते है? यह तो विस्तृत विषय है। आगामी अनेक पुस्तकें संभवतः इसका उत्तर दे पाएँ या न भी दे पाएँ।
यह पुस्तक बच्चों के स्तर को ध्यान में रखकर सरल भाषा में लिखी गई है। बच्चे इसे पढ़कर स्वयं सहज ही समझ सकते है कि उन्हें कैसा व्यवहार करना चाहिए? बड़ों के लिए विशेषकर माता-पिता के लिए भी यह उपयोगी है।
जन्म : 26 जनवरी, 1940; ग्राम नवादा, डा. गुलावठी, जिला बुलंदशहर।
शिक्षा : एम.ए. (दिल्ली), प्रभाकर, साहित्य रत्न, साहित्याचार्य, शिक्षा शास्त्री।
कृतित्व : ‘गीत रसीले’, ‘गीत सुरीले’, ‘चहकीं चिडि़याँ’ (कविता); ‘अच्छे बच्चे सीधे सच्चे’, ‘व्यवहार में निखार’, ‘चरित्र निर्माण’, ‘सदाचार सोपान’, ‘पढ़ै सो ज्ञानी होय’ (नैतिक शिक्षा); ‘व्याकरण रचना’ (चार भाग), ‘ऑस्कर व्याकरण भारती’ (आठ भाग), ‘भाषा माधुरी प्राथमिक’ (छह भाग), ‘बच्चे कैसे हों?’, ‘शिक्षक कैसे हों?’, ‘अभिभावक कैसे हों?’ (शिक्षण साहित्य); ‘पढ़ैं नर-नार, मिटे अँधियार’ (गद्य); ‘श्रीराम नाम महिमा’, ‘मिलन’ (खंड काव्य); ‘सरस्वती वंदना शतक’, ‘हमारे विद्यालय उत्सव’, ‘श्रेष्ठ विद्यालय गीत’, ‘चुने हुए विद्यालय गीत’ (संपादित); ‘गीतमाला’, ‘आओ, हम पढ़ें-लिखें’, ‘गुंजन’, ‘उद्गम’, ‘तीन सौ गीत’, ‘कविता बोलती है’ (गीत संकलन)।सम्मान : 1996 में हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा सम्मानित; 1997 में दिल्ली राज्य सरकार द्वारा सम्मानित।
संप्रति : ‘सेवा समर्पण’ मासिक में लेखन तथा परामर्शदाता, राष्ट्रवादी साहित्यकार संघ (दि.प्र.) के अध्यक्ष; संपादक ‘सविता ज्योति’।