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बच्चे सृष्टि की एक ऐसी नियामत हैं, जिन्हें हर कोई पाना चाहता है। बच्चों के साथ समय बिताना, उनकी बाल-सुलभ क्रीड़ाओं का आनंद लेना अत्यंत सुखद है। माता-पिता बच्चों को संस्कार दे सकते हैं, उनकी कच्ची मिट्टी को सुघड़ आकार दे सकते हैं और भविष्य का एक सफल नागरिक बना सकते हैं।
अभिभावक ही बच्चों को एक सार्थक दिशा प्रदान करते हैं। प्रस्तुत पुस्तक में इस विषय पर व्यापक विचार-विमर्श किया गया है कि विद्यालय की गतिविधियों में अभिभावकों की सहभागिता किस प्रकार हो। इसमें बच्चों के संपूर्ण व संतुलित विकास के लिए जो छोटी-छोटी बातें अभिभावकों के लिए कही गई हैं, उनके अनुपालन से बच्चों के संपूर्ण व्यक्तित्व और प्रतिभा में निखार आएगा।
इसे पढ़ते समय आपको अहसास होगा कि आप पहले से ही बच्चों के पालन-पोषण में बहुत से सुझाव अमल में ला रहे हैं। यह आपके ‘आँखों के तारे’ को आपके समीप लाने का एक विनम्र प्रयासहै।
प्रतिदिन एक सुझाव का अध्ययन करें, उस पर विचार करें, चिंतन-मनन करें, उसे आत्मसात् करें और फिर उसे अपना स्वभाव बना लें। तब आप अपने कार्य-कलापों में गुणात्मक परिवर्तन पाएँगे, जो आपके लाल के चहुँमुखी विकास में अधिक मददगार होगा।
सुनील हांडा (हैदराबाद पब्लिक स्कूल, बीई-बिट्स पिलानी, एम.बी.ए.—आई.आई.एम., अहमदाबाद) पैकेजिंग और दवा उद्योग जगत् के एक स्थापित और सम्मानित उद्यमी हैं।विगत 19 वर्षों से इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, अहमदाबाद में बतौर विजिटिंग फैकल्टी और एल.ई.एम. यानी उद्यमशीलता की प्रेरणा की प्रयोगशाला का कोर्स चलाते हैं।एक स्थायी कोष से मिले चंदे की मदद से उन्होंने ‘एकलव्य एजुकेशन फाउंडेशन’ (एकलव्य) की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य पेशेवर, अभिनव और रचनात्मक दृष्टिकोण के जरिए भारत की स्कूली शिक्षा में आमूल परिवर्तन करना है। अहमदाबाद में एकलव्य एक K-12, आई.सी.एस.ई., अंग्रेजी माध्यम का को-एजुकेशन स्कूल चलाता है।हांडा मानते हैं कि शिक्षा एक बुनियादी ढाँचा है और देश के लिए इसका महत्त्व उतना ही है, जितना सड़क, बिजली और दूरसंचार का होता है। प्रगतिशील देशों ने शिक्षा के क्षेत्र में एक रणनीति के तहत दीर्घकालिक आधार पर निवेश किया है।