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हमारे देश की राजधानी के बाहरी इलाके में पले-बढ़े गुलशन ग्रोवर 1970 के दशक में एक्टिंग में अपना कॅरियर बनाने के लिए बंबई चले आए। ऐसे समय में जब एक्टर बनने की ख्वाहिश रखनेवाले अधिकांश लोग हीरो बनना चाहते थे, तब उन्होंने अपनी पसंद से खलनायक की भूमिकाओं को चुना। उन्होंने एक के बाद एक कई यादगार किरदार निभाए जिनमें से 1989 की सुपरहिट फिल्म, ‘राम-लखन’ में उनकी भूमिका कॅरियर के लिए निर्णायक साबित हुई और बॉलीवुड के ‘बैड मैन’ के तौर पर उनकी पहचान पक्की हो गई।
उस युग की कितनी ही बड़ी-बड़ी फिल्मों को उनके खास तकियाकलामों और अजीब-अजीब किस्म की पोशाकों की वजह से कामयाबी मिली जो अब बॉलीवुड के किस्से-कहानियों का हिस्सा बन चुके हैं। धीरे-धीरे उन्होंने अंतरराष्ट्रीय फिल्मों का रुख किया और वहाँ भी अपने बेहतरीन अभिनय केकारण भारत का जाना-माना चेहरा बन गए।
इस आत्मकथा में, ग्रोवर अपनी कहानी बयाँ करते हैं—अपनी फिल्मों की, अपने सफर की, बैड मैन की छवि को बनाए रखने के मनोवैज्ञानिक और व्यक्तिगत नुकसान की, बॉलीवुड के खलनायकों के बीच होड़ की, ज्यादा विविधता भरे किरदार निभाने के फैसले की, और बहुत कुछ ऐसी बातों की, जो उनकेबारे में लगभग अनजानी हैं।
रोशमिला भट्टाचार्य एक वरिष्ठ पत्रकार हैं जिन्होंने तीन दशकों के अपने कॅरियर में सभी प्रमुख मीडिया संस्थानों के साथ काम किया है, जिनमें ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’, ‘द हिंदुस्तान टाइम्स’ और ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ विशेष उल्लेखनीय हैं। पिछले पाँच वर्षों से ‘मुंबई मिरर’ के एंटरटेनमेंट सेक्शन की जिम्मेदारी उनके ही पास है।
गुलशन ग्रोवर ने भारत और दुनियाभर में 400 से भी अधिक फिल्मों में काम किया है। बॉलीवुड और हॉलीवुड की दूरी को मिटानेवाले वह मुख्यधारा के पहले कुछ अभिनेताओं में से एक हैं जिन्होंने दुनियाभर के विभिन्न देशों की फिल्मों में काम करने का अनुभव प्राप्त किया।