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मुसलमान पछता रहे थे। गुमनाम अजनबी बेगम शबाना की खोज होते हुए भी काफिरों ने उस पर हिंदू नाम थोप अपना अधिकार जता दिया था। क्या कोई ऐसी तरकीब नहीं सोची जा सकती कि आनंदीलाल अवतार घोषित हो, उससे पहले मोमिन घोषित हो जाए? गाँव के पुरोहित माखनलाल ने जरी के किनारेवाली धोती के पल्लू से चेहरे को हवा देते हुए सोचा, अब अधिक देर भली नहीं। यही अवसर है उसे कृष्णावतार घोषित कर बरगद तले के जमघट से उड़ा ले जाने का, मगर उनकी मुराद उनके मन में ही जल-भुनकर राख हो गई। स्याह चोगे पर सुनहरी हरी पगड़ी बाँधे मुसलमानों के रहबर जनाब रब्बानी ‘मुल्ला’ ने ऐसी टाँग अड़ा दी कि चौराहे-चौपाल पर फुसफुसाहट शुरू हो गई—‘मूलत : आनंदीलाल मुसलमान है।’ अब करो तहकीकात और उतारो ससुरे का पायजामा!
वह कुलियों और रिक्शा चालकों की मंडली में बैठ चरस-गाँजे के दम लगाता था, शराब के नशे में धुत् होकर शोर-शराबा करता, ऊधम मचाता और पिटता था। उसने एक साल की सजा भी काटी थी। ये सब जानकर यकीनन आपके मन-मस्तिष्क में किसी लुच्चे-लफंगे, आवारा, भ्रष्ट, पाखंडी शख्स की छवि उभरी होगी। क्षमा करें, वह इस दौर का मसीहा है। उसका नाम है आनंदीलाल ‘मौजूद’। ‘बहता पानी’ उसी रमता जोगी के रंगीन जीवन की दास्तान है।
आबिद सुरती
जन्म : 1935 राजुला (गुजरात)।
शिक्षा : एस.एस.सी., जी.डी. आर्ट्स (ललित कला)।
प्रकाशन : अब तक अस्सी पुस्तकें प्रकाशित, जिनमें पचास उपन्यास, दस कहानी संकलन, सात नाटक, पच्चीस बच्चों की पुस्तकें, एक यात्रा-वृत्तांत, दो कविता संकलन, एक संस्मरण और कॉमिक्स। पचास साल से गुजराती तथा हिंदी की विभिन्न पत्रिकाओं और अखबारों में लेखन। उपन्यासों का कन्नड़, मलयालम, मराठी, उर्दू, पंजाबी, बंगाली और अंग्रेजी में अनुवाद। ‘ढब्बूजी’ व्यंग्य चित्रपट्टी निरंतर तीस साल तक साप्ताहिक ‘धर्मयुग’ में प्रकाशित।
दूरदर्शन, जी तथा अन्य चैनलों के लिए कथा, पटकथा, संवाद लेखन। अब तक देश-विदेशों में सोलह चित्र-प्रदर्शनियाँ आयोजित। फिल्म लेखक संघ, प्रेस क्लब (मुंबई) के सदस्य।
पुरस्कार : कहानी संकलन ‘तीसरी आँख’ को राष्ट्रीय पुरस्कार।
Email : aabidssurti@gmail.com
Web: www.aabidsurti.in
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