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फरवरी 2019 में कश्मीर के पुलवामा में हुआ आतंकी हमला भारत पर हुए सबसे भीषण आतंकी हमलों में से एक था, जिसमें चालीस भारतीय सैनिक शहीद हो गए। लेकिन जब एन.आई.ए. ने बम धमाके की जाँच शुरू की तो उन्हें कोई सुराग नहीं मिल रहा था। इस दुस्साहसी हमले के असली मास्टरमाइंड कौन थे? इसका पता लगाना असंभव सा लग रहा था।
रोमांचकारी और गहन जानकारी से भरी इस पुस्तक में पुरस्कृत लेखक और पत्रकार राहुल पंडिता बताते हैं कि अपराध की जानकारी जुटाने में माहिर एन.आई.ए. टीम ने किस प्रकार एक-एक कर सारी पहेलियों को सुलझाया। तमाम मुश्किलों के बावजूद उन्होंने अनुच्छेद 370 निरस्त किए जाने के दौरान नजरबंद किए गए एक उपद्रवी, मुठभेड़ में मारे गए एक आतंकवादी के वासनापूर्ण संदेशों से भरे मोबाइल फोन और खुद पुलवामा हमले के बीच की कडिय़ों को जोडऩे में सफलता प्राप्त की।
यह पुस्तक कश्मीर और हाल के दिनों में आतंकवाद पर लिखी गई सबसे महत्त्वपूर्ण कृतियों में से एक है, जिसमें पुलवामा केस, उसके प्रतिकार स्वरूप हुए बालाकोट अटैक और आतंकी समूहों की रहस्यमय दुनिया के बारे में ऐसी जानकारी है, जो पहले कभी प्रकाशित नहीं हुई।
राहुल पंडिता पेशे से पत्रकार व लेखक हैं और दिल्ली में निवास करते हैं। उनकी पुस्तक ‘अवर मून हैज ब्लड क्लॉट्स’ सर्वकालिक बिकनेवाली पुस्तकों में शामिल है तथा कई भारतीय भाषाओं में इसका अनुवाद भी किया गया है। वे ‘द लवर बॉय ऑफ बहावलपुर’ एवं ‘हेलो बस्तर : द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ इंडियाज मॉइस्ट मूवमेंट’ नामक पुस्तक के लेखक हैं और ‘द ऐब्सेंट स्टेट’ के सह-लेखक भी।
उन्होंने इराक और श्रीलंका जैसे युद्ध क्षेत्रों से व्यापक स्तर पर रिपोर्टिंग भी की है। वर्ष 2010 में युद्ध पर रिपोर्टिंग करने के लिए उन्हें ‘इंटरनेशनल रेड क्रॉस अवॉर्ड’ से सम्मानित किया गया। वर्ष 2015 में उन्हें भारत की ओर से प्रतिष्ठित ‘येल वल्र्ड फेलोशिप’ के लिए चुना गया था।