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हिंदी पत्रकारिता की संपादन-चर्या के आदि चरण पर ही बालमुकुंद गुप्त ने जोखिम भरी देश-प्रीति का प्रमाण दिया था। कालाकांकर के ‘हिंदोस्थान’ की सेवा से वे इस अपराध के आधार पर विमुक्त कर दिए गए थे कि ‘सरकार के खिलाफ बहुत कड़ा’ लिखते थे। पराधीन भारत की हिंदी पत्रकारिता का यह एक प्रेरक तथ्य है। ‘हिंदी बंगवासी’ के अंतरंग रिश्ते के टूटने के मूल में गुप्तजी का जीवन-सत्य ही प्रधान कारण बना था। गुप्तजी अवसर पर उसूल को वरीयता देने के आग्रही थे। सैद्धांतिक आग्रह से ही उन्होंने अपने समय के लोकप्रिय पत्र ‘हिंदी बंगवासी’ से अपने को अलग कर लिया था।
हिंदी पत्रकारिता की समृद्धि के प्रतिमान के रूप में ‘भारतमित्र’ हिंदी जगत् में चर्चित-स्वीकृत हो गया। इतना ही नहीं, ‘भारतमित्र’ और संपादक बालमुकुंद गुप्त एक-दूसरे के पर्याय बन गए। ‘भारतमित्र’ ने ही पत्रकार गुप्तजी की विशिष्ट हिंदी शैलीकार की छवि लोक में उजागर की।
कृष्ण बिहारी मिश्र
जन्म : सन् 1936 में बलिहार, बलिया (उ.प्र.) के किसान परिवार में।
शिक्षा : गोरखपुर के मिशन स्कूल, काशी हिंदू विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय से। हिंदी पत्रकारिता विषयक अनुशीलन पर कलकत्ता विश्वविद्यालय से ‘डॉक्टरेट’ की उपाधि प्राप्त। डी.लिट. की मानद उपाधि प्राप्त।
आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसे विदग्ध आचार्यों की कक्षा तथा आचार्य नंददुलारे वाजपेयी एवं आचार्य चंद्रबली पांडेय जैसे पांक्तेय पंडितों के अंतरंग सान्निध्य से सारस्वत संस्कार और अनुशीलन-दृष्टि अर्जित।
उ.प्र. हिंदी संस्थान के ‘साहित्य भूषण’ पुरस्कार, ‘कल्पतरु की उत्सव लीला’ कृति पर ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’, ‘महात्मा गांधी साहित्य सम्मान’, ‘पद्मश्री’ अलंकार से विभूषित।
रचना-संसार : 5 पत्रकारिता लेखन, 5 ललित-निबंध संग्रह, 8 विचार-प्रधान निबंध संग्रह, ‘नेह के नाते अनेक’ संस्मरण, ‘कल्पतरु की उत्सव लीला’ जीवन-प्रसंग, 5 कृतियाँ संपादित, ‘भगवान् बुद्ध’ कृति का अंग्रेजी से अनुवाद।
संपर्क : 7बी, हरिमोहन राय लेन, कोलकाता-700015
दूरभाष : 033-2251-0182