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''डीकरा! तुम्हारे सिर पर गांधी की टोपी है, इसलिए तू कैसा भी हो, बेईमान नहीं हो सकता।’ ’ इससे पूर्व कि मैं उससे कुछ कहूँ, वह जा चुकी थी। उसके गहनों का थैला मेरे हाथ में अटका हुआ था। कुछ क्षणों पूर्व घायल बहनों के हाथों में झंडे देखे थे। गिरते- पड़ते भी उनके मुँह से 'भारतमाता की जय’ के स्वर फूट रहे थे। लाठियाँ खाने के बावजूद जुलूस आगे जा चुका था। और अभी-अभी वह महिला मुझे बेईमान न होने का सबक सिखाकर जा चुकी थी। गांधी पर भाषण देना और गांधीजी को इस रूप में देखना बड़ा ही अद्भुतअनुभव था। जीवन में पहली बार समझा कि गांधी क्या है? गांधी भावराज्य के तंतुओं का एक मकडज़ाल है, जो व्यक्ति के मन को बाँधता है। जो भी एक बार इस परिधि में आ जाता है, उसका निकल पाना कठिन हो जाता है। गांधी मानव के मन की उस सीमा तक पहुँच गया था, जो ईमानदारी को गांधी टोपी जैसे प्रतीक से जोड़ रहा था।
(इसी उपन्यास से)
कार्य : राजस्थान के विभिन्न विद्यालयों में शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रधानाचार्य। शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालयों में अध्यापन, फीजी (विदेश) में शिक्षण।
प्रकाशन : ‘शक्ति पुत्र’, ‘चेतक घोडे़ का सवार’, ‘मेवाड़ का सूर्यपुत्र’, ‘गांधी टोपी’, ‘धरती का सूरज’, ‘अपराजेय’, ‘परशुराम’, ‘दर्प’, ‘महाराणा सांगा’, ‘सिंधुपति श्री चचदेव’, ‘सिंधुपुत्र दाहर’, ‘सिंधुमित्र बप्पा रावल’, ‘बंद मुट्ठियों के सपने’ (उपन्यास), ‘सांस्कृतिक भूगोल कोश’ (कोश) एवं राष्ट्रीय शिक्षा-नीति, ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड, अनुभव एवं विचार, अलख पच्चीसी का हिंदी एवं अंग्रेजी में अनुवाद, चारभुजा गढ़बोर, वास्तु वैभव।
सम्मान : राजस्थान शासन द्वारा शिक्षक दिवस पर राज्यस्तरीय पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा उपन्यास विधा का ‘रांगेय राघव पुरस्कार’, साहित्य मंडल नाथद्वारा एवं कई समाज-सेवी संस्थाओं द्वारा सम्मानित। संप्रति : स्वतंत्र लेखन।