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बंदा बहादुर ने अपना प्रारंभिक जीवन एक वैरागी के रूप में बिताया। यह लगभग सत्रह वर्ष चला। अधिकांश समय उन्होंने दक्षिण भारत में गोदावरी नदी पर स्थित नंदेड़ नामक नगर में अपने आश्रम में तपश्चर्या करते बिताया। उन्होंने हिंदू शास्त्रों तथा योग एवं प्राणायाम विद्याओं का गहन अध्ययन किया। कुछ लोग मानते हैं कि वे तंत्र विद्या के भी ज्ञाता थे।
गुरु गोविंद सिंह ने उन्हें गले से लगाया, उन्हें अमृत छकाकर सिख बनाया, उनका नाम बंदा सिंह बहादुर रखा और उन्हें पंजाब से मुगल राज्य की जड़ें उखाड़ फेंकने की जिम्मेदारी सौंपी।
इसके बाद उन्होंने पंजाब में मुगलों के शहर, गढ़ और किले आक्रमण करके अपने अधीन करने का कार्यक्रम शुरू किया। बंदा ने ऐलान किया कि वे जमींदारों को हटाकर सभी जमीन खेतिहर गरीब किसानों में बाँटेंगे।
महमूद गजनी और मुहम्मद गौरी के दिनों के बाद इतनी सदियाँ बीत जाने के बाद पहली बार उत्तर भारत में किसी गैर-मुसलमानी शक्ति ने एक बड़े और बेशकीमती भू-भाग पर अपना आधिपत्य जमाया। अंततः मुगलों ने बंदा बहादुर को पकड़कर बेडि़यों में डाल लोहे के पिंजड़े में बंद कर दिया गया। हथकडि़यों और पाँव की साँकलों में बंदा को महीनों तक जेल में बंद रख, मुसलमान जल्लादों के हाथों जो अमानवीय यातनाएँ दी गईं, वे अनुमान और कल्पना से परे हैं।
वीर, क्रांतिकारी, हुतात्मा, धर्मपारायण, राष्ट्रनिष्ठ वीर बंदा सिंह बहादुर की जाँबाजी और पराक्रम का गौरवगान करती यह पुस्तक हर राष्ट्राभिमानी के लिए पढ़नी आवश्यक है।
मेजर जनरल सूरज भाटिया
सन् 1954 में ज्वॉइंट सर्विसेज विंग, देहरादून में भरती होने के बाद सन् 1957 में कमीशन प्राप्त। देश के विभिन्न भागों में कार्यरत रहे; साथ ही जूनियर तथा सीनियर कमांड कोर्स तथा वेलिंग्टन में स्टाफ कॉलेज कोर्स किया। सन् 1965 के भारत-पाक युद्ध में आर्म्ड डिवीजन के साथ सियालकोट सेक्टर, पाकिस्तान में सेवारत थे। सन् 1971 के भारत-पाक युद्ध में एक अग्रिम ब्रिगेड के स्टाफ में सिंध, पाकिस्तान में युद्ध में भाग लिया। सन् 1978-79 में इनसर्जेंसी के दिनों में मिजोरम में बटालियन कमांड की। स्टेशन कमांडर, जम्मू के रूप में सेनाध्यक्ष से प्रशंसा पाई। नेफा, अरुणाचल में कार्यकाल के दौरान राष्ट्रपति द्वारा विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किए गए। मेजर जनरल का रैंक पाने के पश्चात् सेना मुख्यालय से सेवानिवृत्त हुए।
वे एक वीर सैन्य अधिकारी होने के साथ-साथ सहृदय मानव, संवेदनशील कवि एवं लेखक थे। उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं—शौर्यं तेजो, शूर सूरमा, Conflict & Diplomacy (पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री जसवंत सिंह के साथ), जलियाँवाला कांड का सच, शब्दचित्र। यह उनकी अदम्य इच्छाशक्ति और जिजीविषा ही थी कि उन्होंने रोगग्रस्त व कष्ट में रहते हुए भी वीर बंदा बहादुर के पराक्रम और शौर्य की गौरवगाथा को लिखा।
स्मृतिशेष : 16 सितंबर, 2014