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सत्तर की देहरी पर कदम रखने से बेहतर अपनी जिंदगी पर मुड़कर देखने का समय और क्या होगा! इस पुस्तक में पं. हरिप्रसाद चौरसिया अपनी जीवन-कथा अपने चिर-प्रशंसक व संगीत अनुरागी सुरजीत सिंह को जैसी है, जैसी थी, वैसी ही सुनाते हैं। संस्मरणों और घटना-वृत्तांतों से भरपूर इस पुस्तक में उनके एक पहलवान के पुत्र से संगीतज्ञ होने तक की यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक शैली में है। आगे जारी रहते हुए यह वृत्तांत बताता है कि कैसे वह आकाशवाणी के स्टाफ आर्टिस्ट से फिल्म स्टूडियो के वाद्य-संगीतज्ञ, संगीत निर्देशक और फिर अंतरराष्ट्रीय गुरु बने। बाँसुरी जैसे मामूली साज को शास्त्रा्य संगीत समारोहों का अनुपम वाद्य बनानेवाले कलाकार की जीवन-यात्रा का सर्वथा पठनीय वृत्तांत। संगीत-इतिहास के एक महत्त्वपूर्ण अंश का मूल्यवान् दस्तावेज।
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अनुक्रमिका
लेखकीय — Pgs. 9
कैसे और यों — Pgs. 11
1. हसनी हॉलैंड — Pgs. 15
2. एक सितारे का जन्म — Pgs. 37
3. बॉलीवुड का बुलावा — Pgs. 84
4. प्यार होता है हर किसी के लिए — Pgs. 117
5. परिवर्तन : गुरु माँ से पहले और आगे — Pgs. 131
6. चौरसिया इंटरनेशनल — Pgs. 164
7. गुरुकुल और आदर्श गुरु — Pgs. 203
8. जाते-जाते — Pgs. 217
जीविका से व्यवसायी और शौक से भारतीय शास्त्रीय संगीत के बाँसुरीवादक हैं। वह सुप्रसिद्ध पं. वी.जी. जोग के शिष्य रह चुके हैं तथा आकाशवाणी के संगीत कार्यक्रम के संयोजक और बचपन से रॉक संगीत के प्रेमी रहे हैं। पं. हरिप्रसाद चौरसिया के जीवनीकार के रूप में यह उनका नया अवतार है।