₹200
अफसर होना व्यर्थ है
अफसर होना व्यर्थ है, घर में पूछ न ताछ
पत्र-प्रपोजल छोड़कर, बना रहे हैं छाछ
बना रहे हैं छाछ, प्रभु क्या हालत कीन्हीं
मैडम का अब काम रह गया नुक्ता-चीनी
माँ के संग मिलकर बच्चे भी कोस रहे हैं
कुछ आता-जाता नहीं, ये केवल बॉस रहे हैं।
पोशाक
फ्रंट रो में एक नेता चल रहे थे साथ-साथ
झकझकाती ड्रेस उनकी देखकर मैंने कहा
तीन पीढ़ी से यही पोशाक,
कोई खास बात?
वो जरा से मुस्कराए
कवि से कोई क्या छुपाए?
आजकल इसके बिना पहचान नहीं है
अस्ल बात—इसमें गिरेबान नहीं है!
शिक्षा : आई.आई.टी. दिल्ली से एम.टेक.।
संप्रति : भारतीय रेल में उच्च प्रशासनिक अधिकारी।
प्रकाशित कृतियाँ : ठहाका एक्सप्रेस, बर्फियाँ व्यंग्य की।
विशेष : राष्ट्रीय गणतंत्र दिवस कवि सम्मेलन (लाल किला, दिल्ली), ताज महोत्सव (आगरा), महामूर्ख सम्मेलन (जयपुर), श्रीराम कवि सम्मेलन (दिल्ली), अट्टहास कवि सम्मेलन (गाजियाबाद) समेत देश-विदेश के सैकड़ों प्रतिष्ठित कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ।
सम्मान : काका हाथरसी पुरस्कार (2018), मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार (2015)।
राजभाषा प्रसार के लिए रेल मंत्री द्वारा रजत पदक (2013)
उत्कृष्ट कार्यों के लिए रेल मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार (2005)
ई-मेल : mkgirsme@gmail.com
दूरभाष : 9667758860