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"जीवन में हर क्षण कुछ-न-कुछ नया घटता रहता है और वह हर क्षण आपको कुछ-न- कुछ देकर ही जाता है। लेकिन जो मिलता है, उसे विनम्रता से ग्रहण करने की बजाय हम किसी और चीज की प्रत्याशा में भागते रहते हैं। भविष्य की आस हमें वर्तमान के सुख से दूर कर देती है। कितना अच्छा हो कि हमारे भविष्य की आस के तार हमारे वर्तमान के सुख से जुड़ें और हम हर उस क्षण का आनंद उठा सकें, जो गुजर रहा है।
वर्तमान में जीना जीवन के सही सुख को अनुभूत करना है। पिछला कुछ समय वर्तमान के ऐसे ही क्षणों का आनंद उठाने में और उन्हें साझा करने में बीत रहा है। इसमें नए मिलनेवाले लोग हैं, नए देखे गए स्थान हैं, कुछ जानी-अनजानी परंपराएँ हैं और नए उपजने वाले विचार भी हैं। आनंद के इन्हीं क्षणों को साझा करते हुए मिलनेवाला आनंद का डबल डोज सचमुच अकल्पनीय है। जीवन के अल्पविरामों को सँजोते, हर पल की पहचान को समझते हुए जिंदगी में जो बोनस में मिला है, उसी को बाँटने का प्रयास है। ख्वाब बस इतना ही है कि यह जितना अधिक हो सके, बँटे और बँटता ही चला जाए।"
सच्चिदानंद जोशी
जन्म : 9 नवंबर, 1963
पत्रकारिता एवं जनसंचार शिक्षा के क्षेत्र में अपने प्रदीर्घ अनुभव के साथ विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं में कार्य। कलात्मक क्षेत्रों में अभिरुचि के कारण रंगमंच, टेलीविजन तथा साहित्य के क्षेत्र में सक्रियता। पत्रकारिता एवं संचार के साथ-साथ संप्रेषण कौशल, व्यक्तित्व विकास, लैंगिक समानता, सामाजिक सरोकार और समरसता, चिंतन और लेखन के मूल विषय। देश के विभिन्न प्रतिष्ठानों में अलग-अलग विषयों पर व्याख्यान। कविता, कहानी, व्यंग्य, नाटक, टेलीविजन धारावाहिक, यात्रा-वृत्तांत, निबंध, कला समीक्षा इन सभी विधाओं में लेखन। एक कविता-संग्रह ‘मध्यांतर’ बहुत चर्चित हुआ। पत्रकारिता के इतिहास पर दो पुस्तकों का प्रकाशन। प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक ‘सच्चिदानंद जोशी की लोकप्रिय कहानियाँ’ को भी अच्छा प्रतिसाद मिला। बत्तीसवें वर्ष में विश्वविद्यालय के कुलसचिव और बयालीसवें वर्ष में विश्वविद्यालय के कुलपति होने का गौरव। देश के दो पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालयों की स्थापना से जुड़े होने का श्रेय। भारतीय शिक्षण मंडल केराष्ट्रीय अध्यक्ष।