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"बौद्ध धर्म का सार' पुस्तक दक्षिण भारत की कई पत्रिकाओं में बौद्ध धर्म पर लिखे गए कुछ लेखों की एक श्रृंखला का पुस्तक स्वरूप है। इसे इस उद्देश्य से तैयार किया गया है कि एक छोटे से संपादित रूप में, बौद्ध धर्म के प्रमुख विचारों को प्रस्तुत किया जाए और आधुनिक समाज को ध्यान में रखकर उनकी व्याख्या की जाए। यहाँ पर इनकी मौलिकता का दावा नहीं किया जा रहा। इसमें शामिल बहुत से तथ्यों को कई जाने-माने प्राच्यविदों की रचनाओं में पा सकते हैं। इस सत्य के बावजूद कि हमें अवतरण पालि या संस्कृत भाषा में प्राप्त हुआ, हम इसे उस भाषा से प्राप्त फल के रूप में बता रहे हैं। इसे उनके अनुयायियों द्वारा उनकी की गई विनम्र सेवा ही माना जाए।
अपने गुरु की शिक्षा को प्रस्तुत करते समय उनके अनुयायियों का यह परम कर्तव्य हो जाता है कि उनके मौलिक सिद्धांतों को ध्यान में रखें, उन्हें कभी न छोड़ें, जो उस शिक्षा का आधार है। बुद्ध के अनुसार, प्रामाणिकता की आवाज सत्य में मौजूद होती है और जहाँ सत्यता अग्रणी होती है, शिष्यों को उसी का पालन करना चाहिए। इसी आदेश को बौद्ध धर्म के सभी स्कूलों में एकल नियामक तत्त्व के रूप में स्वीकार किया गया, जिसमें गुरु की कोई ऐसी शिक्षा नहीं हो सकती, जो तर्कों की कसौटी पर खरी न उतरती हो।"