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इस संग्रह की कहानियाँ मुख्यत: मॉरीशस की राजनीति, समाज, धर्म, संस्कृत आदि के जीवंत सत्यों का उद्घाटन करती हैं । मॉरीशस की स्वतंत्रता के बाद वहाँ के समाज में राजनेताओं का जो पतन हुआ है, तस्करी, भ्रष्टाचार और देशद्रोहिता जिस रूप में पनपी है, आदमी- आदमी के रिश्तों में जो गिरावट आई है, स्त्री के शोषण की जो परिस्थितियाँ बनी हुई हैं, नैतिकता एवं मनवीय रिश्ते जैसे खंडित हो रहे हैं, उन्हें लेखक ने सजीवता के साथ इन कहानियों में प्रस्तुत किया है । ये कहानियाँ ऐसे बवंडर को उजागर करती है जो मॉरीशस के जन-जीवन को अंदर- बाहर दोनों ओर से मथ रहा है ।
जन्म : 9 अगस्त, 1937 को।
अठारह वर्ष हिंदी का अध्यापन, तीन वर्ष तक युवा मंत्रालय में नाट्य कला विभाग में नाट्य प्रशिक्षक। इसके उपरांत दो वर्ष के लिए महात्मा गांधी संस्थान में हिंदी अध्यक्ष और अनेक वर्षों तक संस्थान की हिंदी पत्रिका ‘वसंत’ के संपादक रहे।
प्रकाशित पुस्तकें : ‘लहरों की बेटी’, ‘मार्क ट्वेन का स्वर्ग’, ‘फैसला आपका’, ‘मुडि़या पहाड़ बोल उठा’, ‘और नदी बहती रही’, ‘आंदोलन’, ‘एक बीघा प्यार’, ‘जम गया सूरज’, ‘तीसरे किनारे पर’, ‘चौथा प्राणी’, ‘लाल पसीना’, ‘तपती दोपहरी’, ‘कुहासे का दायरा’, ‘शेफाली’, ‘हड़ताल कब होगी’, ‘चुन-चुन चुनाव’, ‘अपनी ही तलाश’, ‘पर पगडंडी मरती नहीं’, ‘अपनी-अपनी सीमा’, ‘गांधीजी बोले थे’, ‘शब्द भंग’, ‘पसीना बहता रहा’, ‘आसमान अपना आँगन’, ‘अस्ति-अस्तु’ (उपन्यास); ‘एक थाली समंदर’, ‘खामोशी के चीत्कार’, ‘इनसान और मशीन’, ‘वह बीच का आदमी’, ‘अब कल आएगा यमराज’ (कहानी-संग्रह); ‘विरोध’, ‘तीन दृश्य’, ‘गूँगा इतिहास’, ‘रोक दो कान्हा’ (नाटक); ‘गुलमोहर खौल उठा’, ‘नागफनी में उलझी साँसें’, ‘कैक्टस के दाँत’, ‘एक डायरी बयान’ (काव्य)।
इसके अतिरिक्त एक प्रतिनिधि संकलन, एक अनुवादित पुस्तक तथा दो संपादित ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं।
संप्रति : मॉरिशस स्थित रवींद्रनाथ टैगोर संस्थान के निदेशक।