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अपनी कलम के माध्यम से प्रशासन, शिक्षा, कला, संगीत, संस्कृति, रीति-रिवाज, तकनीकी, खेल, हैरिटेज और पर्यटन जैसे विभिन्न विषयों पर विजय गोयल ने नई नजर डाली है। उन्हेंने खुद को कभी राजनीति के दायरों में समेटकर नहीं रखा। नवभारत टाइम्स, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, पंजाब केसरी, जनसत्ता, राष्ट्रीय सहारा सहित प्रमुख राष्ट्रीय समाचार-पत्र और पत्रिकाओं में प्रकाशित अपने लेखों के माध्यम से उन्होंने देश के करोड़ों पाठकों के बीच उन विषयों को उठाया है, जो अकसर आम पाठक के मन में उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं, लेकिन उन्हें शब्द नहीं मिलते। इस पुस्तक में संगृहीत श्री गोयल के चुनिंदा लेख ऐसे ही विचारों और भावनाओं की बेबाकबयानी हैं। उनकी बेबाकी ही उनके लेखन की खूबी है, लिहाजा यही इस पुस्तक का शीर्षक है—‘बेबाक बात’।
मिसाल के तौर पर पुस्तक में शामिल ‘तो फिर सेंसर बोर्ड की जरूरत ही क्या?’ ऐसा ही लेख है। जब फिल्म ‘वीरे दी वेडिंग’ की भाषा को लेकर हर तरफ चर्चा चल रही थी, तब किसी ने इस विषय पर लिखने का साहस नहीं किया, लेकिन विजय गोयल ने इस पर बेबाक लिखा। उनका लेख ‘नेताओं का दर्द कौन समझेगा’ राजनेताओं के जीवन की अंदरूनी उलझनों, कशमकम और परेशानियों को सामने लाता है। इस लेख को 400 सांसदों ने एक साथ पढ़ा।
प्रसिद्ध पत्रिका बाल भारती में 12 साल की उम्र में उनका लेख ‘मेरी पहली कहानी’ छपा था, जिसमें उन्होंने बताया कि उन्होंने उसे कैसे लिखा। पिछले एक साल में उनके 100 से ज्यादा लेख प्रकाशित हो चुके हैं। ये लेख समाज में नए सवाल भी पैदा करते हैं और उनके जवाब भी तलाशते हैं। लेखक का मानना है कि वाजिब कारण होने पर सवाल खड़े होने चाहिए, तभी जवाब निकलते हैं और यही सिलसिला जीवन और समाज को सही दिशा में ले जाता है।
विजय गोयल
शिक्षा : एमकॉम, एलएलबी (श्रीराम कालेज ऑफ कामर्स, दिल्ली), डीलिट् (मानद), गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय।
विजय गोयल से मेरा संबंध 40 वर्षों से ज्यादा का है। 1972 के श्रीराम कॉलेज के छात्र यूनियन से लेकर केंद्र सरकार के 2018 के मंत्रिमंडल तक हम साथ-साथ काम करते आ रहे हैं। वे केवल पद पर बैठे नेता नहीं, बल्कि आम जनता के नेता हैं।
श्री गोयल चार बार के सांसद और एनडीए की सरकार में दूसरी बार मंत्री हैं। तमाम व्यस्तताओं के होते हुए भी वह लिखने के लिए समय निकाल लेते हैं। उनकी पुस्तक ‘बेबाक बात’ उन चुनिंदा लेखों का संग्रह है जो राजनीति और समाजसेवा से आगे उनके अंदर के संवेदनशील लेखक के एक नए पहलू को सामने लाती है। उनकी लेखनी की खासियत है कि वे जैसा महसूस करते हैं, वैसा लिखते हैं। आम पाठक की भाषा में अपने इर्द-गिर्द की घटनाओं पर नई दृष्टि उन्हें अपने पाठकों से जोड़े रखती है। गोयल अकसर नए और अनछुए विषयों पर लिखते हैं। उनके लेख समाज में नए सवाल भी पैदा करते हैं और उनके जवाब भी तलाशते हैं।
जोखिमों की परवाह किए बिना सबसे हटकर काम करना श्री गोयल की सबसे बड़ी खासियत है। उनकी कलम ने शिक्षा, कला, संगीत, संस्कृति, खेल, हैरिटेज और पर्यटन जैसे कई क्षेत्रों को गहराई से छुआ है। राजनीतिक जीवन के साथ-साथ उनका सामाजिक जीवन भी कई उपलब्धियों का गवाह है। पूरे देश में लॉटरी पर प्रतिबंध, चाँदनी चौक की विरासत को प्रस्तुत करते और लाखों दर्शकों को खींचने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘चौदहवीं का चाँद’ का आयोजन और चाँदनी चौक की पुरानी हवेली ‘हवेली धर्मपुरा’ का जीर्णोद्धार कर उसे पर्यटकों के आकर्षण का नया केंद्र बनाना इसकी कुछ मिसालें हैं। अपनी यात्राओं के दौरान वे हर शहर की विरासतों में गहरी रुचि लेते हैं। साथ ही अपनी संस्था ‘हैरिटेज इंडिया फाउंडेशन’ के माध्यम से विरासत के संरक्षण में लगे हुए हैं।
चाँदनी चौक की संस्कृति, हैरिटेज और विरासत पर उनके द्वारा लिखित ‘दिल्ली : द एम्परर सिटी’ पुरानी दिल्ली के अनजाने पहलुओं को सामने लाने वाली अपनी तरह की इकलौती कॉफी टेबल पुस्तक है। ‘बचपन के खेल, खान-पान एवं रहन सहन’ उनकी दूसरी प्रकाशित पुस्तक है। श्री गोयल के लेख नवभारत टाइम्स, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, पंजाब केसरी, जनसत्ता और राष्ट्रीय सहारा जैसे देश के बड़े अखबारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। प्रस्तुत पुस्तक उनके ऐसे ही चुनिंदा लेखों का संग्रह है।
(अरुण जेटली)