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"डरावनी कहानियों में 'डर' नामक रस की उपस्थिति अनिवार्य नहीं है। डरावनी कहानियों में राक्षसों के साथ आदि की कल्पना स्वाभाविक रूप से की जाती रही है । डरावनी कहानियों का इतिहास बहुत पुराना और विविधताओं से भरा है।
डरावनी कहानियों में पशु-पक्षियों, जड़ वस्तुओं को अविश्वसनीय आचरण करते हुए दिखाया जाता है, जिससे पाठक हैरान हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, पेड़-पौधों और पत्थरों का बोलना, पहाड़ों का चलना-फिरना, पशु-पक्षियों का मनुष्यवत् आचरण करना आदि। वह कल्पना की दुनिया है, वास्तविकता से परे | पाठक- श्रोता सामान्यतः मनोरंजन की चाहत में कहानी के के पास आते है।
अपने मूल में डरावनी कहानियाँ अच्छाई और बुराई के संघर्ष के बीच अच्छाई की जीत का भरोसा दिलाती हैं, जिन्हें आगे चलकर कवियों, कहानीकारों और इतिहासकारों ने अपनी-अपनी प्रतिभा से सँवारा है। डरावनी कहानियों में राक्षस की मौजूदगी इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं है, जितना यह विश्वास कि उसे परास्त किया जा सकता है। भय, रोमांच, कौतूहल, जिज्ञासा, आशंका एवं अनिश्चितता से भरी ये कहानियाँ पाठकों को डराएँगी, लेकिन साथ ही सुखांत का सुख भी देंगी।"
हिंदी के प्रतिष्ठित लेखक महेश दत्त शर्मा का लेखन कार्य सन् 1983 में आरंभ हुआ, जब वे हाईस्कूल में अध्ययनरत थे। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी से 1989 में हिंदी में स्नातकोत्तर। उसके बाद कुछ वर्षों तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए संवाददाता, संपादक और प्रतिनिधि के रूप में कार्य। लिखी व संपादित दो सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाश्य। भारत की अनेक प्रमुख हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में तीन हजार से अधिक विविध रचनाएँ प्रकाश्य।
हिंदी लेखन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अनेक पुरस्कार प्राप्त, प्रमुख हैं—मध्य प्रदेश विधानसभा का गांधी दर्शन पुरस्कार (द्वितीय), पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी, शिलाँग (मेघालय) द्वारा डॉ. महाराज कृष्ण जैन स्मृति पुरस्कार, समग्र लेखन एवं साहित्यधर्मिता हेतु डॉ. महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान, नटराज कला संस्थान, झाँसी द्वारा लेखन के क्षेत्र में ‘बुंदेलखंड युवा पुरस्कार’, समाचार व फीचर सेवा, अंतर्धारा, दिल्ली द्वारा लेखक रत्न पुरस्कार इत्यादि।
संप्रति : स्वतंत्र लेखक-पत्रकार।