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यह जो माणिक है न...
शहनाइयों के चीखते स्वरों के बीच किसी इकतारे का दर्द सुना है आपने? आँसुओं की एक गरम बूँद से शीशे चटखते देखे हैं आपने? उम्र और एहसास के पत्थरों को ढोने की बजाय कभी छैनी से तराशा है आपने? या फिर उलझे हुए घुँघरूओं जैसी मासूम हँसी कभी सुनी है आपने? नहीं...तो इन सारे एहसास को एक साथ महसूस करने के लिए आप माणिक वर्मा की व्यंग्य कविताएँ पढ़िए।
—के.पी. सक्सेना
तीसरी आँख के मालिक
माणिक वर्मा की व्यंग्य प्रतिभा रेडियम की काँपती सुई की तरह कड़वी सच्चाइयों की ओर निरंतर संकेत करती है। उन संकेतों का दायरा असीम लगता है। उनकी कविताएँ कवि की वर्तमान इतिहास में निरंतर उपस्थिति की सूचक हैं।
—शरद जोशी
सुधी पाठकों के लिए प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री माणिक वर्मा की चुनिंदा सदाबहार रचनाओं का अनुपम उपहार। हमारा दावा है—इन रचनाओं के शब्द आपको कहीं-न-कहीं जरूर पकड़ लेंगे और फिर आप छूटना भी चाहें तो छूट नहीं पाएँगे।
जन्म : 25 दिसंबर,1938 को उज्जैन (म.प्र.) में।
शिक्षा : एम.ए. (हिंदी), उर्दू से अदीबो-माहिर, अदीबो-कामिल।
प्रकाशन : ‘आदमी और बिजली का खंभा’, ‘महाभारत अभी जारी है’, ‘मुल्क के मालिको, जवाब दो’ (व्यंग्य संग्रह), ‘आखिरी पत्ता’ (गजल संग्रह)।
भारत की सभी लब्धप्रतिष्ठ पत्रिकाओं में नियमित रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी व दूरदर्शन पर अनेक बार कविताएँ प्रसारित। कवि सम्मेलनों में कविता पाठ। वीडियो एवं ऑडियो कैसेट्स द्वारा प्रचार।
सम्मान-पुरस्कार : ‘काका हाथरसी पुरस्कार’, ‘अट्टहास शिखर सम्मान’, ‘ठिठोली पुरस्कार’, ‘कलाश्री पुरस्कार’, ‘उपासना पुरस्कार’, ‘टेपा पुरस्कार’ एवं ‘कला आचार्य सम्मान’ आदि से अभिनंदित।
विदेश यात्रा : अमेरिका, चीन, बैंकॉक, हांगकांग, सिंगापुर, मॉरिशस, नेपाल, मस्कट आदि।