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भगत सिंह की ‘जेल नोटबुक’ सुप्रसिद्ध विचारकों और दार्शनिकों के विचारों को लेकर उनकी पड़ताल का एक नया मार्ग खोलती है। एक जिज्ञासु और पढ़ने की भूख रखनेवाले व्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध, भगत सिंह ने जेल में सजा काटने के दौरान अपनी पसंद के जाने-माने लेखकों की चुनिंदा पुस्तकों को बड़ी संख्या में जुटा लिया था। उन किताबों के जिन अंशों, नोट्स और उक्तियों को उन्होंने अपनी जेल नोटबुक में लिखा, वे न सिर्फ उस गंभीरता का परिचय देते हैं, जिनसे वह उन पुस्तकों को पढ़ा करते थे, बल्कि उनकी बौद्धिक गहराई और सामाजिक तथा राजनीतिक चिंताओं का प्रदर्शन भी करते हैं। भगत सिंह नोटबुक में नोट्स या कोई उक्ति लिखते समय उसके पूरे संदर्भ को दर्ज करने के प्रति ज्यादातर लापरवाह ही रहते थे, जिसके कारण बहुत सी भ्रांतियाँ उत्पन्न हुई हैं और उनके प्रति गहरा सम्मान रखनेवाले विद्वानों की ओर से इस बारे में काल्पनिक दावे और बेबुनियाद अनुमान सामने आए हैं। इसमें ऐसी बातें हैं कि भगत सिंह ने जेल में किन महान् विचारकों की कितनी किताबें और कितनी मौलिक रचनाओं का अध्ययन किया था।
अपनी इस पुस्तक ‘जेल नोटबुक: संदर्भ और प्रासंगिकता’ में हरीश जैन भगत सिंह के काम को आगे बढ़ाते हुए उनके द्वारा नोटबुक में दर्ज सूत्रों और उक्तियों के मूल स्रोतों को ढूँढ़ने, उनकी पढ़ी पुस्तकों को तलाशने और हर उक्ति विशेष और सूत्र को प्रामाणिकता प्रदान करने के लिए जो कार्य करते हैं उसमें उनकी असाधारण रूप से पुष्ट और श्रमसाध्य खोज और अनुसंधान की झलक दिखाई देती है। एक दशक से भी अधिक समय तक लेखक की ओर से की गई खोज की कहानी, युक्तिपूर्ण अनुमान और सूझ-बूझ से किताबों की खोज और पहचान, तथा उस समय उपलब्ध कई संभावित किताबों को खँगालने की प्रक्रिया, जिनमें से कई अब आसानी से उपलब्ध भी नहीं हैं, एक दिलचस्प अध्ययन है। उस समय के विभिन्न लेखकों के विचारों तक पहुँच और उनके महत्त्व को संदर्भ से जोड़कर आप समझ सकते हैं कि क्यों उनका भगत सिंह के लिए इतना महत्त्व रहा होगा। उन्होंने जिन किताबों को पढ़ा उनके मूल विचारों पर चर्चा के अलावा यहाँ उन उक्तियों के महत्त्व को विस्तार से बताने का प्रयास किया गया है, जिन्हें भगत सिंह की ओर से नोटबुक में दर्ज किया गया था। यह अपनी तरह की अनोखी रचना है। इसका अध्ययन ज्ञान को समृद्ध करने के साथ ही आनंद का अनुभव भी कराता है।
शहीद भगत सिंह की अध्ययन-शीलता और रुचि-अभिरुचि का दिग्दर्शन कराती ऐतिहासिक महत्त्व की पठनीय पुस्तक।
—डॉ. हरीश पुरी